यूं लगी खुशियों को नजर करीब आठ-नौ माह पूर्व दो वर्षीय बेटे रौनक का पेट दर्द के बाद फूलने लग गया। इस पर कानाराम ने बालोतरा, जोधपुर में उपचार करवाया, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। पत्नी के कहने पर वह इसे लेकर ससुराल सूरतगढ़ पहुंचा। वहां भी उपचार के बाद रौनक के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ।
इस पर उसे बीकानेर ले गए। वहां रोग जांच के बाद चिकित्सकों ने बच्चे को ब्लड कैंसर होने की बात कही तो परिवार सदस्यों के होश उड़ गए। गत छह माह में बेटे के उपचार पर वह हजारों रुपए खर्च कर चुका है, लेकिन अब हालात काबू से बाहर हो रहे हैं।
दोराहे पर जिन्दगी परेशान कानाराम की जिदंगी अब दो राहे पर खड़ी है। उसे हर सप्ताह बालोतरा से गंगानगर रक्त चढ़ाने व दवाइयां लेने जाना पड़ता है। वहां भी दो से तीन दिन तक बैड या ब्लड नहीं मिलता। इसके लिए कई बार चक्कर लगाने पड़ते हैं।
वहीं दवाइयों के लिए 3500-4000 हजार रुपए भी खर्च हो जाते हैं। इतनी आय नहीं होने से कानाराम ने परिवार व रिश्तेदारों से उधार लेकर व गहने बेचकर राशि खर्च कर चुका है। समझ में नहीं आता क्या करूं
बेटे को ब्लड कैंसर है उपचार पर हर माह हजारों रुपए खर्च होते हैं। गहने बेच चुका हूं, उधारी भी बहुत हो गई है। समझ में नहीं आ रहा है कि काम व उपचार दोनों एक साथ कैसे करूं। घर पर बच्चों को रोते देखता हूं तो खुद पिघल जाता हूं।
कानाराम, बच्चे के पिता