ग्वालियर। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। इस दौरान न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी होती है, इसलिए अध्ययन के लिए यह समय उपयुक्त माना गया है। मान्यता के अनुसार जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।यह भी पढ़ें- श्रावण मास 2016, भगवान शिव का ऐसे मिलेगा आशीर्वादशास्त्रों में गु का अर्थ ‘अंधकार या मूल अज्ञान’ और रु का का अर्थ ‘उसका निरोधक’ बताया गया है। जानकारों के अनुसार गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है, मतलब अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है।“अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः “गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।यह भी पढ़ें- इसे खाने से बढ़ती है इम्यूनिटी पावर, जानिये और क्या-क्या हैं इसके फायदेभारत में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं।यह भी पढ़ें- धरती के नीचे यहां है अलौकिक दुनिया, जानिये पाताल के रहस्यक्या करें गुरु पूर्णिमा के दिन 1. प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके तैयार हो जाएं।2. घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए।3. फिर ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए।4. इसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए। 5. फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए। 6. अब अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करके उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए।यह भी पढ़ें- बुद्ध पूर्णिमा, जानिये क्या है महत्वगुरु पूर्णिमा पर यह भी है खास 1. गुरु पूर्णिमा पर व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए। 2. यह पर्व श्रद्धा से मनाना चाहिए, अंधविश्वास के आधार पर नहीं। 3. इस दिन वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर गुरु को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। 4. गुरु का आशीर्वाद सभी-छोटे-बड़े तथा हर विद्यार्थी के लिए कल्याणकारी तथा ज्ञानवर्द्धक होता है। 5. इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।मंदिरों में उमड़ा लोगों का सैलाबग्वालियर के पुराने हाईकोर्ट स्थित गिर्राजजी मंदिर में मंगलवार को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर भकतों की भीड़ उमड़ी। भक्तों द्वारा मंदिर की परिक्रमा लगाई गई।वीडियो देखें-