ग्वालियर। छत्री मैदान में हर वर्ष होने वाली रामलीला की शुरुआत जनकगंज में किराना का कारोबार करने वाले गुलाबचंद बंसल ने की। वहां के नागरिकों ने उनसे कहा कि आपका हम सहयोग करेंगे, बस यहां रामलीला शुरू करा दो। इस पर बंसल ने सन् 1951 में जनकगंज अस्पताल के सामने छत्री बाजार के करीब बड़े पीपल के नीचे रामलीला शुरू कराई। इसमें सिंधिया परिवार का भी अहम योगदान रहा। यह बात उनके पुत्र बाल कृष्ण बंसल ने बताई। रामलीला समारोह समिति छत्री बाजार के महामंत्री विमलचन्द्र जैन ने भी इस बात की स्वीकारोक्ति की। मामूली प्रयास से रामलीला चल पड़ी और आज इसका वृहद रूप सामने हैं। जब टीवी का दौर नहीं था तब इस छत्री मैदान में रामलीला देखने के लिए दूरदराज से ग्रामीण भी आते थे। हालांकि आज भी इस रामलीला का क्रेज कम नहीं हुआ है। आज भी काफी दूर-दूर से लोग रामलीला देखने आते हैं। हर साल छत्री मैदान में विजयादशमी के दिन रावण दहन देखने शहर भर के लोग एकत्रित होते हैं। उनकी एक खासियत थी कि रामलीला के दिनों में वे घर से टिफिन ले जाकर अपना खाना भी वहीं खाते थे। राजमाता ने भी देखा था केवट संवाद: वे बताते हैं कि इस रामलीला को तत्कालीन महाराज जीयाजी राव सिंधिया का बड़ा ही सहयोग मिलता था। उनके निधन के बाद स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया स्वयं आती थीं। एक बार विजयाराजे सिंधिया ने हमारे पिताजी से कहा कि आप हमें केवल राजतिलक पर ही आमंत्रित करते हो, कभी भगवान राम की ही लीला भी दिखाना चाहिए उस दिन शाम को केवट संवाद की लीला थी। राजमाता के लिए दर्शकदीर्घा के बीच में एक बड़ा मंच बनाया गया।