ग्वालियर। किसी व्यक्ति की आत्मा को किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कराना ही ‘पर-काया प्रवेश’ कहलाता है। नाथ सम्प्रदाय के आदि गुरु मुनिराज ‘मछन्दरनाथ’ के विषय में भी कहा जाता है कि उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि प्राप्त थी. सूक्ष्म शरीर से वे अपनी इच्छानुसार गमनागमन विभिन्न शरीरों में करते थे। एकबार अपने शिष्य गोरखनाथ को स्थूल शरीर की सुरक्षा का भार सौंपकर एक मृत राजा के शरीर में उन्होंने सूक्ष्म शरीर से प्रवेश किया था। महाभारत के शान्ति पर्व में वर्णन है कि सुलभा नामक विदुषी अपने योगबल की शक्ति से राजा जनक के शरीर में प्रविष्ट कर विद्वानों से शास्त्रार्थ करने लगी थी। उन दिनों राजा जनक का व्यवहार भी स्वाभाविक न था। कई बार सशरीरी स्वानुभव के लिए मुश्किल क्षणों को सहज भाव से ग्रहण करने के लिए परकाया प्रवेश की विधि आजमायी जाती थी। इसका सबसे प्रचलित उदाहरण मंडन मिश्र की पत्नी द्वारा आदि शंकराचार्य से पूछे प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने के लिए उनके द्वारा सम्पन्न परकाया प्रवेश की घटना में मिलता है। कई जानकारों के अनुसार पुनर्जन्म की तरह परकाया प्रवेश अर्थात् एक भौतिक शरीर से दूसरे भौतिक शरीर में प्रवेश करना भी पूर्णतया सत्य है। यह भी पढ़ें- नवरात्र स्पेशल: यहाँ गिरी थी सती माता की नाभि, ये है सिद्धपीठ की कहानी फैरेल ने देखी थी परकाया प्रवेश की सत्य घटना फैरेल ब्रिटिश शासन के समय 1937 के आसपास एक सैनिक अधिकारी के रूप में आए थे शीघ्र ही उनकी सैनिक टुकड़ी को आसाम-बर्मा सीमा पर तैनात कर दिया गया। उसी दौरान उनके साथ एक अनोखी घटना घटित हुई। अपने इस अनुभव को बाद में अपने देश लौटकर फैरेल ने एक ब्रिटिश समाचार पत्र में इस प्रकार प्रकाशित कराया था कि 1939 के जून में मेरी सैनिक टुकड़ी आसाम-बर्मा सीमा के पास एक ऐसी ही नदी के किनारे तैनात थी। उस दिन मुझे एक वृद्घ सन्यासी दिखाई पड़ा जो नदी के बहते हुए पानी से एक लाश जैसी वस्तु को खींच कर बाहर निकालने का प्रयास कर रहा था। मैंने तुरंत वृद्घ के उपर नजर रखनी शुरू कर दी। थोड़ी देर में वह वृद्घ संन्यासी नदी से शव को बाहर निकालने में कामयाब हो गया। नदी से शव को बाहर निकालने के बाद वह संन्यासी उसे खींचते हुए पास ही वृक्षों के झुरमुट के पीछे ले गया। मेरी उत्सुकता उस समय एकाएक आश्चर्य में बदल गयी, जब हमने वृक्षों के उस झुरमुट के पीछे से एक युवक को बाहर आते हुए देखा। उस युवक ने वही वस्त्र पहने हुए थे जो संन्यासी ने पहन रखे थे। मेरा आदेश पर मेरे सैनिक कुछ देर में ही उस युवक को पकड़कर मेरे पास ले आए, मैंने उस युवक से पूछा,‘सच-सच बताओ, तुम कौन हो और उन वृक्षों के पीछे छिपकर क्या कर रहे थे? और वह बूढ़ा संन्यासी कहां है जो शव को नदी से खींचकर तुम्हारे पास उसी झुरमुट में ले गया था?’ महाशय वह बूढ़ा संन्यासी मैं ही हूं, उस युवक ने उत्तर दिया। मेरा वृद्ध शरीर उन्हीं वृक्षों के पीछे एक मिट्टी की खोह में पड़ा हुआ है। मैंने अपनी योग के साधना के बल पर अपनी आत्मा को इस युवक के शरीर से बदल लिया है, चूंकि मेरा पुराना शरीर बहुत वृद्ध, दुर्बल और रोगी पड़ गया था। मैं उससे कुछ भी करने में सक्षम नहीं रह गया था। यह भी पढ़ें- राजा विक्रमादित्य ने यहां चढ़ाया था अपना 11 बार शीश, जानिये पूरी कहानी हां, मैंने देखा है पर-काया प्रवेश: कापालिक प्रसिद्ध तांत्रिक कापालिक (भूपेंद्र आनंद) के मुताबिक भी उनके गुरु योगानंद सरस्वती ने उन्हें एक बार पर-काया प्रवेश का साक्षात दर्शन कराया था। उनके मुताबिक लंबे समय तक गुरु के साथ रहने के बाद जब योगानंद सरस्वती जी ने उन्हें शिष्य स्वीकार कर लिया। तो इसके बाद उन्होंने कापालिक को बहुत सी विद्याएं सिखाई। इसी के चलते एक बार कामाख्या के एक श्मशान में जब वे(कापालिक), उनके गुरु व गुरु माता बैठे हुए थे तभी कोलकत्ता से एक दंपत्ति मिस्टर व मिसेज बेनर्जी वहां आए, और गुरु को प्रणाम करके वहीं बातचीत करने लगे। इसके बाद कुछ डॉक्टर्स भी वहां आए और पर-काया प्रवेश पर बातचीत होने लगी। इसके बाद कापालिक के अनुसार उनके गुरु ने उन्हें पानी लाने के लिए कहा तो वे पानी लेकर आ गए, गुरु ने पानी हाथ में लिया और बेनर्जी पर डाला, जिससे वह मुर्छित हो गए। वहां बैठे डॉक्टरों ने जांच के पश्चात उन्हें मृत घोषित कर दिया। इसके बाद गुरु कापालिक को वहीं रुकने की कहकर थोड़ा दूर जाकर बैठ गए। करीब 30 मिनट के बाद गुरु ने कापालिक से फिर पानी मंगवाया और उसे मिस्टर बेनर्जी पर छिड़का तो वह जीवित हो गए और अपनी पत्नी के साथ वापस कोलकत्ता लौट गए। कापालिक के मुताबिक यह सब देखकर मैं भी अपने गुरु से डर गया, लेकिन बाद में गुरु ने उन्हें समझाया कि ये जो आदमी जीवित हो कर गया है, यह मिस्टर बेनर्जी नहीं है! यह वापस आएगा। करीब 3-4 दिन बाद बेनर्जी दंपति वापस आया तो उनकी पत्नी गुरु के पास पहुंची और कहने लगी कि यह तो सांसारिक व्यक्ति रह ही नहीं गए, मैं इनके साथ नहीं रह सकूंगी। इस पर गुरु ने कापालिक को ब्रह्मपुत्र नदी की ओर भेजा, कापालिक के अनुसार वहां मैंने देखा कि एक संयासी का शव पड़ा है, जिसकी मौत 3-4 दिन पहले ही हुई थी। बेनर्जी की पत्नी द्वारा लगातार नारजगी व्यक्त करने पर गुरु ने उनसे कहा सब ठीक हो जाएगा, मेरा विश्वास करो। इसके बाद गुरु ने कुछ जल छिडकर उस दंपत्ति को वापस भेज दिया और मिस्टर बेनर्जी पूरी तरह से ठीक हो गए। कापालिक के अनुसार यह था पर-काया प्रवेश जिसका उनके गुरु ने उन्हें दर्शन कराया था।