ग्वालियर। मरीजों की जेब पर दवा सेंध लगा रही है। इससे उनका दर्द कम होने की बजाय बढ़ता जा रहा है। प्रदेश सरकार भले ही मुफ्त इलाज देने का दावा करे, लेकिन हकीकत यह है कि मरीज दवा के नाम पर बाजार में लुट रहा है। सरकार जितना बजट प्रति मरीज सालाना उपलब्ध करा रही है, वह ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है। यह भी पढ़ें-अब पंजाब में बढ़ेगे चंबल के बच्चे सर्दी जुकाम के इलाज में खर्च हो जाते हैं 200 रुपए साधारण सर्दी-जुकाम के इलाज और जांच पर एक बार में आम आदमी 100 से 200 रुपए खर्च कर देता है, जबकि स्वास्थ्य महकमा शहर की आबादी के स्वास्थ्य पर केवल 170 रुपए प्रति व्यक्ति के मान से सालाना बजट बनाता रहा है। अगर शहर के सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में आने वाले चार लाख मरीजों पर होने वाले खर्च की बात करें तो उन पर स्वास्थ्य महकमा केवल 425 रुपए ही सालाना खर्च कर पाता है, जबकि शहर का ये मरीज हर वर्ष दो सौ करोड़ की दवा निजी मेडिकल स्टोर से खरीद रहा है। इस मान से ये खर्च सालाना 5 हजार का हुआ। शहर की प्रति व्यक्ति आय 30 हजार रुपए का करीब 20 फीसदी होता है। एेसे में मुफ्त इलाज के सरकारी दावे की हकीकत साफ नजर आती है। यह भी पढ़ें-डीआरएम बताएं क्या यही है रेलवे का विकास आंकड़े एक नजर में- 17 करोड़ 4 लाख: स्वास्थ्य एवं चिकित्सा का कुल बजट 14 करोड़ 32 लाख: जेएएच का बजट 2 करोड़ 72 लाख: स्वास्थ्य का बजट 10 लाख : शहर की कुल आबादी 150 करोड़ : निजी दवा कारोबार सालाना “महंगाई और दवा की कीमतों में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए सरकार को दवा, मेटेरियल की खरीदी का बजट बढ़ाना चाहिए, जिस हिसाब से अभी बजट मिलता है, वह ऊंट के मुंह में जीरा साबित होता है। इसलिए मरीजों को बाजार पर निर्भर रहना पड़ता है।” डॉ. एसआर अग्रवाल, पूर्व डीन, जीआरएमसी यह भी पढ़ें-अपनी अय्याशी के लिए यात्रियों की जान से खिलवाड़ हर माह पहुंचते हैं 30,000 सरकारी अस्पताल में आने वाले मरीजों की बात करें तो अकेले जयारोग्य अस्पताल में ही मरीजों की संख्या औसतन 30 हजार प्रति माह है। सालभर में यहां औसतन चार लाख मरीज इलाज के लिए आते हैं। पिछले वर्ष तो मरीजों की संख्या 4.50 लाख थी, लेकिन इनको दी जाने वाली दवाओं के लिए सरकार के पास पर्याप्त बजट नहीं है। सालाना 11 करोड़ रुपए का बजट दवाओं के लिए दिया जाता है, जिसमें दीनदयाल दवा का बजट भी शामिल रहता है। यहां भी बढ़े मरीज जिला अस्पताल मुरार में मरीजों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। यहां औसतन 21 हजार मरीज हर महीने इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। साल भर में यहां औसतन 2.50 लाख मरीज इलाज के लिए आते हैं। इनके लिए स्वास्थ्य विभाग करीब 2 करोड़ 72 लाख रुपए का बजट देता है, जो स्वास्थ्य के लिए नाकाफी है। “हमें जो बजट मिलता है, उससे पूर्ति हो जाती है। वैसे भी सरकार ने दवा व कई सुविधाएं नि:शुल्क कर दी हैं। अगर दवा का बजट कम पड़ता है तो लोकल खरीदी कर दवा का अभाव कम किया जाता है। बाद में बजट का आवंटन आने पर व्यवस्था सुचारू रूप से चलने लगती है।” डॉ. अनूप कम्ठान, सीएमएचओ