आकंडों के मुताबिक पिछले 11 महीने में पुलिस अधिकारियों से लेकर शहर में थानों तक 1650 से ज्यादा ऐसी शिकायतें आई हैं। जबकि जिले के गांव में पुलिस तक करीब 990 शिकायत ही पहुंची हैं। इन अपराधों की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी कहते हैं समाज में अब संयुक्त परिवार की प्रथा कम होने से युवाओं पर परिवार का नियंत्रण और गुस्से पर काबू नहीं होना असभ्यता का ग्राफ बढ़ा रहा है।
गाली गलौज और धमकी की शिकायतें शहर की निचली बस्तियों से लेकर पॉश कॉलोनी तक से आ रही हैं। पॉश कॉलोनी आनंद नगर निवासी महिला ने बहोड़ापुर थाने में शिकायत की है कि पति प्रमोद ने घर का माहौल खराब कर दिया है। पति गालियां बकता है और जान से मारने की धमकी देता है। प्रमोद पर धारा 323, 294 और 506 का केस दर्ज किया गया है। जांच अधिकारी फिरोज खां का कहना है, मामला पारिवारिक है। पति ने हावी होने के लिए अभद्रता की है। इसी इलाके के दामोदर बाग निवासी डॉ. रसीद अली हैदरी ने शिकायत की है कि उमरउद्दीन ने सरेआम उनकी बेइज्जती की है। उन्हें गालियां दीं, रोकने पर जान से मारने की धमकी दी। उमरउद्दीन ने रंगबाजी दिखाने के लिए उनके साथ अभद्रता की है। उमरउद्दीन पर भी एफआइआर दर्ज की है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि शहर के लगभग हर थाने में रोज इस तरह की शिकायतें आती हैं, जिनमें रंगबाजों ने हावी होने के लिए गालियां और धमकियां दी हैं।
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युवाओं पर परिवार का नियंत्रण जरूरी है
इस संबंध में रिटायर्ड एसपी जेपी शर्मा का कहना है कि, शहर में पुलिस के सामने रोज गालीबाजी और धमकियों की शिकायतें आती हैं। इस पर अंकुश की जिम्मेदारी परिवारों की भी है। सभ्य समाज में युवाओं पर परिवार का नियंत्रण जरूरी है। सिर्फ पुलिस से सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती है। समाज और परिवार के स्तर पर भी जिम्मेदारी समझनी होगी।
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इन इलाकों में ज्यादा शिकायतें
बहोड़ापुर, पुरानी छावनी, जनकगंज, मुरार, थाटीपुर, विश्वविद्यालय, झांसी रोड, हजीरा, गिरवाई और ग्वालियर थाने में गाली और धमकी की शिकायतें ज्यादा सामने आती हैं।
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कानूनी पेंच का फायदा उठाते हैं
रिटायर्ड सीएसपी दीपक भार्गव का कहना है, कानूनी पेंच की वजह से रंगबाजी में अभद्रता करने वालों पर कसावट नहीं होती। क्योंकि पुलिस गालीबाजी में गवाह मांगती है। उसके हिसाब से अपराध सार्वजनिक स्थल पर हो तो केस दर्ज होगा, अगर घर या ऐसे स्थान पर हो जहां सिर्फ पीड़ित और फरियादी हों तो अभद्रता करने वाला पुलिस के घेरे से बाहर ही रहता है। ऐसे लोग कानूनी पेंच का फायदा उठाते हैं। इसके अलावा इसे संगीन अपराध नहीं माना जाता, आरोपियों को सिर्फ नोटिस थमाकर पुलिस रवाना करती है।
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