दरअसल मरीजों के सामने बड़ी परेशानी यह है कि अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद महंगी दवाओं का खर्च उठाना उनके लिए मुश्किल होगा। मरीजों को छह महीने तक दवाओं का सेवन करने के साथ ही विशेष एहतियात भी बरतना है। नतीजतन महंगे इलाज की फिक्र में कई मरीज ठीक होने के बाद भी अस्पताल से छुट्टी नहीं कराना चाहते हैं।
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गौरतलब है कि जयारोग्य अस्पताल में ब्लैक फंगस के 27 मरीज भर्ती हैं। डॉक्टरों ने इलाज और ऑपरेशन के बाइ इनका जीवन बचाया है। इन मरीजों को डिस्चार्ज करने की तैयारी है। डॉक्टरों का कहना है कि ब्लैक फंगस के मरीजों का उपचार लंबा चलता है। इसमें तीन से छह महीने लगते हैं। मरीजों को नियमित दवाएं और इंजेक्शन लेना जरूरी है।
नोडल ऑफिसर ब्लैक फंगस जेएएच, डॉ. वी पी नारे ने बताया कि ब्लैक फंगस का इलाज लंबा चलता है। इसमें इंजेक्शन के साथ दवाएं लेना जरूरी है। छह महीने तक मरीज का फॉलोअप लेते रहेंगे। देखा जाएगा कि दवाएं खाने के बाद क्या स्थिति बन रही है। मरीज को डिस्चार्ज होने के बाद दवाएं तो खानी ही पड़ेंगी।
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बीमारी ने बिगाड़ी माली हालत
बिलौआ के ग्राम उदलपाड़ा निवासी अतेंद्र बघेल बीई करने के बाद डबरा के निजी स्कूल में पढ़ाते थे। कोरोना के बाद ब्लैक फंगस ने घेर लिया तो इलाज में जमा पूंजी खर्च हो गई। ब्लैक फंगस के इलाज ने पूरे परिवार को तोड़कर रख दिया। अतेंद्र ब्लैक फंगस के कारण एक आंख गवां चुके हैं। ऐसे में दवाओं का खर्च उठाना पूरे परिवार के लिए बहुत मुश्किल है।
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भिण्ड निवासी विनोद शर्मा भी ब्लैक फंगस से पीड़ित हैं। एक महीने पहले जयपुर गए थे, वहां हार्ट अटैक आते ही आंखें लाल हो गईं। ग्वालियर में भर्ती कराया तो ब्लैक फंगस होने की जानकारी मिली। इलाज के बाद अब वह स्वस्थ हैं, पर घर में सिर्फ बेटा ही कमाता है। वह जयपुर में एक दुकान में काम करता है। इतनी कम आय में परिवार का पालन और दवाओं का खर्च उठाना मुश्किल है।