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ग्वालियर

MP ELECTION 2018: भितरवार विधानसभा क्षेत्र मतदाता बोले- पक्की गेल न होवे से जाने कितेक बहू-बेटियां तड़प-तड़प के मर गईं

MP ELECTION 2018: भितरवार विधानसभा क्षेत्र मतदाता बोले- पक्की गेल न होवे से जाने कितेक बहू-बेटियां तड़प-तड़प के मर गईं

ग्वालियरNov 18, 2018 / 12:54 pm

Gaurav Sen

bhitarwar vidhansabha news 2018

MP ELECTION 2018: भितरवार विधानसभा क्षेत्र मतदाता बोले- पक्की गेल न होवे से जाने कितेक बहू-बेटियां तड़प-तड़प के मर गईं

पुनीत श्रीवास्तव @ ग्वालियर

हमें तो भरोसो ही न होत कि हम आजाद है गए, बस जो समझ लेओ कि कैसेऊ जिदंगी काट रहे हैं। कितेक बहू-बेटियां पक्की गैल (सडक़) न होवे से तड़प- तड़प के मर गईं, न जाने कितेक जान और जाएंगी। फिर चुनाव आ गए, फिर नेता आवेंगे। बोलेंगे कि हमें जिताओ, तिहाए लाने घाटीगांव तक पक्की गैल बनेगी।’ यह टीस हर बार छले जाने से तंग खितेड़ा, सिमेड़ी, सुरैला, पईखोह, वैदइखोह के लोगों की हैं। इनके पते पर ठप्पा तो ग्वालियर का लगा है, लेकिन परचून के सामान से लेकर इलाज तक के लिए नदी पार कर पड़ोसी जिले मुरैना जाना पड़ता है। कई पीढिय़ां इस इंतजार में गुजर गईं कि गांव का रास्ता पक्का होगा, इलाज के लिए तरसते हुए जान नहीं गंवानी पड़ेगी।

ग्वालियर से करीब 60 किमी दूर खितेड़ा गांव भितरवार विधानसभा क्षेत्र में आता है। करीब 1200 की आबादी वाले इस गांव तक पहुंचने का रास्ता बेहद खराब है। बुजुर्ग काशीबाई (60) पत्नी सीताराम सिंह ने बताया कि कहने को तो गांव ग्वालियर जिले में है, लेकिन नमक भी खरीदना हो तो आसन नदी पार कर जौरा जाना पड़ता है। सुबह 8 बजे सेकेदार नाव लगा देता है।

शाम तक उसके भरोसे ही जिंदगी चलती है। न जाने कितने लोग इसलिए मर गए कि रास्ता नहीं होने से उन्हें समय पर अस्पताल नहीं ले जाजा जा सका। हालात बयां करते हुए काशी की आंखों में आंसू छलक आए। रूंधे गले से बोलीं, हम अनपढ़ हैं, इसलिए हर बार नेता ठग लेते हैं। इनके झूठे वादों को सुनते-सुनते बूढ़े हो गए, लेकिन पक्की क्या, कच्ची सडक़ भी नहीं बनी।

कहां कितने मतदातासुरैला- 300 , सिमेड़ी- 270 , खितेड़ा- 290 , बसई- 230

बस निकल गई तो सब बेकार
खितेड़ा निवासी अंतराम सिंह गुर्जर ने बताया कि गांव में तीन पुरा हैं, सबके मुहाने नदी से लगे हैं। सुबह होते ही तीनों पुरा पर नाव लग जाती हैं। पहले पुरा पर केदार की नाव रहती है। उसकी भी तली टूटी है। दूसरे पर शिवनारायण नाव चलाता है। बसई से परमाल की नाव लोगों को रोजमर्रा की जरूरत के लिए पड़ोसी जिले में ले जाती है। इसमें भी समय का ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि नदी के उस पार जौरा जाने के लिए सिर्फ एक बस सुबह 9 बजे आती है, वह निकल गई तो नदी पार करना भी बेकार। फिर घर लौटो, नाव पर बाइक रखकर नदी पार करो, तब जाकर काम होगा।

 


रास्ता नहीं था, गर्भवती शिक्षिका की मौत हो गई
गांव वाले बताते हैं कि घाटीगांव करीब 22 किमी दूर है। पक्की सडक़ हो तो नदी पार करने का जोखिम क्यों उठाएं? आम दिनों में नदी से काम चल जाता है, लेकिन बरसात में नदी चढ़ जाती है तो भगवान से दुआ मांगते हैं कि गांव में कोई बीमार न पड़ेे। किसी गर्भवती को प्रसव न हो। सडक़ नहीं होने से दो महीने पहले गांव के सरकारी स्कूल में शिक्षिका ज्योति पत्नी ओमप्रकाश गुर्जर की मौत हो गई। चाह कर भी ज्योति को नहीं बचा सके। ज्योति को प्रसव पीड़ा हुई तो गांव से पथरीला रास्ता पार कर घाटीगांव या ग्वालियर ले जाना जोखिम भरा था। नदी पार कर जौरा ले गए। काफी समय लग गया और ज्योति की हालत बिगड़ गई। उसने अस्पताल पहुंचकर बच्चे को जन्म दिया, लेकिन उसकी जान नहीं बची। अब उसका दो महीने का बेटा ताई के सहारे है।

इस बार नेताओ से कहेंगे हमें लिखकर दो
सुरैला गांव निवासी पूरनसिंह बताते हैं कि गांव में 8 वीं तक स्कूल है, लेकिन शिक्षक नहीं है। सिर्फ दो हैंडपंप हैं। इनसे खुद पानी पीएं या मवेशियों को पिलाएं। पिछले चुनाव में तमाम नेता कह गए थे कि पक्की सडक़ बनवाएंगे, स्कूल में मास्टर आएगा, गांव में ही बीमारों को इलाज मिलेगा, लेकिन मतदान के बाद किसी ने सिरौला की तरफ नहीं देखा। अब दो दिन से नेताओं ने फिर चक्कर काटना शुरू किया है। इस बार तय किया है कि मुंह जुबानी बात नहीं चलेगी। वोट उसे ही देंगे जो वादों को पूरा करने का लिखित में भरोसा देगा।

“ऐसा है रास्ता: गांव तक जाने के लिए ऐसे रास्ते से जाना पड़ता है।”

 

इस बार वोट देने भी नाव से जाना होगा
गांव के सरपंच बनवारी गुर्जर इसकी वजह नहीं बता पाए कि घाटीगांव तक गांव को जोडऩे के लिए पक्का रास्ता क्यों नहीं बना। बनवारी कहते हैं, इस बार तो गांव को और बड़ी सजा मिल रही है। अभी तक गांव में ही मतदान होता था, लेकिन इस बार गांव वालों को वोट देने बसौठा जाना पड़ेगा। पहाड़ी रास्ते से जाते हैं तो 30-35 किमी का चक्कर पड़ेगा। इसलिए नदी पार कर बसौठा जाना पड़ेगा। बनवारी का कहना है गांव के साथ यह सौतेला व्यवहार है, क्योंकि बसौठा में करीब 100-125 वोटर हैं, जबकि खितेड़ा में 290 मतदाता हैं।

बच्चे पढऩे शहर नहीं जा पाते
बच्चे गांव के स्कूल में जितना पढ़ गए उससे ही सब्र करना पड़ता है। शहर तक ले जाने का न रास्ता है, न जरिया। तमाम गर्भवती महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग इलाज के अभाव में दम तोड़ चुके हैं। नेताओं को वादे याद कराओ तो सौन चिरैया को विकास में रोड़ा बताकर बहाने बनाते हैं।
दशराम गुर्जर, निवासी बसई

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शशिभूषण पांडेय IMAGE CREDIT: शशिभूषण पांडेय
गांव से जिले को जोडऩे का रास्ता नहीं होने की मजबूरी में गांव वाले आसन नदी के रास्ते जिंदगी गुजारने को मजबूर।

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खितेड़ा गांव के छोर से नाव पकडक़र, दूसरे छोर पर जौरा, मुरैना जाते ग्रामीण
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सुरेला गांव में पानी के लिए परेशान लोग।

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शशिभूषण पांडेय IMAGE CREDIT: शशिभूषण पांडेय

नाव नहीं तो लकड़ी का सहारा
‘मेरी तो पूरी जिदंगी खितेड़ा, सिमेड़ी, पईखोह, वैदहीखोह सहित बसई के लोगों को नदी पार कराने में गुजर चली। 30 साल से सुबह 8 बजे खेत से सटाकर नाव लगा देता हूं। हर दिन 50 से ज्यादा चक्कर लगाने पड़ते हैं, क्योंकि सिर्फ नदी ही रास्ता है। किसी काम से बाहर चला जाऊं तो पूरा गांव नाव चलाना जानता है। जिसे जरूरत होती है, चप्पू लेकर नाव ले जाता है। किराया 10 रुपए है। इस बार गांव वालों ने साल भरकर का पैसा एकमुश्त दिया है। बरसात में नदी चढ़ जाती है तो परेशानी होती है। नाव न हो तो लकड़ी के सहारे भी लोगों को नदी पार करानी पड़ती है। चुनाव में नेता आते हैं, हम कहते हैं सडक़ या नदी पर पुल बनवा दो। सब बोल जाते हैं इस बार सडक़ बनवा देंगे, लेकिन बाद में कोई नहीं आता।’

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