अटेर का किले की सैकड़ों किवदंती,कई सौ किस्सों और न जाने कितने ही रहस्य को छुपाए हुए चुपचाप सा खड़ा दिखाई देता है। जैसे मानो अभी उसके गर्त में और भी रहस्य हों। महाभारत में जिस देवगिरि पहाड़ी का उल्लेख आता है यह किला उसी पहाड़ी पर स्थित है। इसका मूल नाम देवगिरि दुर्ग है। इस लिहाज से यह किला और भी खास हो जाता है।
किले में सबसे चर्चित है यहां का खूनी दरवाजा। आज भी इस दरवाजे को लेकर किवदंतिया जिले भर में प्रचलित है। खूनी दरवाजे का रंग भी लाल है। इस पर ऊपर वह स्थान आज भी चिन्हित है जहां से खून टपकता है। इतिहासकार और स्थानीय लोग बताते है कि दरवाजे के ऊपर भेड़ का सिर काटकर रखा जाता था। भदावर राजा लाल पत्थर से बने दरवाजे के ऊपर भेड़ का सिर काटकर रख देते थे,दरवाजे के नीचे एक कटोरा रख दिया जाता था।
खजाने के लालच ने बर्बाद किया इतिहास
चंबल नदी के किनारे बना अटेर दुर्ग के तलघरों को स्थानीय लोगों ने खजाने के चाह मे खोद दिया। अटेर के रहवासी बताते हैं कि दुर्ग के इतिहास को स्थानीय लोगों ने ही खोद दिया है। इस दुर्ग की दीवारों और जमीन को खजाने की चाह में सैकड़ों लोगों ने खोदा है, जिसकी वजह से दुर्ग की इमारत जर्जर हो गई है
भदौरिया शासक ने बनवाया ये रहस्मयी किला
अटेर के किले का निर्माण भदौरिया राजा बदनसिंह ने 1664 ईस्वी में शुरू करवाया था। भदौरिया राजाओं के नाम पर ही भिंड क्षेत्र को पहले “बधवार” कहा जाता था। गहरी चंबल नदी की घाटी में स्थित यह किलाा भिंड जिले से 35 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। चंबल नदी के किनारे बना यह दुर्ग भदावर राजाओं के गौरवशाली इतिहास की कहानी बयां करता है। भदावर राजाओं के इतिहास में इस किले का बहुत महत्व है। यह हिन्दू और मुग़ल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है।
इस बर्तन में खून की बूंदें टपकती रहती थी। गुप्तचर बर्तन में रखे खून से तिलक करके ही राजा से मिलने जाते थे,उसके बाद वह राजपाठ और दुश्मनों से जुड़ी अहम सूचनाएं राजा को देते थे। आम आदमी को किले के दरवाजे से बहने वाले खून के बारे में कोई जानकारी नहीं होती थी। जिससे वह आज भी अनजान बने हुए है।