ग्वालियर। आजादी के बाद कई बड़े बांधों का निर्माण हुआ, लेकिन ग्वालियर का हरसी बांध (Harsi dam) आजादी से भी पुराना है। डबरा-भितरवार के 200 और मुरार के 40 गांवों की कृषि भूमि की सिंचाई और पेयजल का सहारा यह बांध अपने जमाने में एशिया के सबसे बडे़ मिट्टी बांध (Harsi dam) में शामिल रहा। जो ग्वालियर स्टेट (gwalior estate) की समृद्धि का सबसे बड़ा प्रतीक था। तब बांध के निर्माण में 78 लाख रुपए खर्च का अनुमान लगाया गया था। उस दौर में इतनी रकम काफी थी।
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तत्कालीन महाराजा जीवाजी राव सिंधिया ने 1911 में पार्वती नदी पर बांध का निर्माण शुरू कराया और 1935 में यह पूरी तरह बनकर तैयार हुआ। 2133. 60 मीटर लंबी मिट्टी की पार के एशिया के इस पहले बांध के गेट का डिजाइन हॉलैंड के इंजीनियर बीएफ डायफ ने तैयार किया था। इसी इंजीनियर ने 1940 में डबरा शुगर मिल की स्थापना की।
वर्तमान में यह बांध लगभग 65 हजार हैक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई के लिए पानी देता है, जबकि तत्कालीन समय में 25 हजार हैक्टेयर भूमि की सिंचाई के लिए यह बांध तैयार किया गया था। 29.26 मीटर ऊंचाई की पार वाले इस बांध से पुरानी हरसी नहरों के अलावा 102 किलोमीटर लंबाई वाली हरसी उच्च स्तरीय नहर परियोजना को भी पानी मिल रहा है। बीते वर्ष हरसी बांध से निकले ओवर फ्लो ने भितरवार और डबरा के कई गांवों में तबाही मचाई थी। अब ओवर फ्लो से बचाव के साथ ही इसकी पार को मजबूती देने के लिए जल संसाधन विभाग ने नई योजना बनाई है।
आकार ले रही दूसरी सबसे बड़ी टनल, 280 गांवों को होगा लाभ
भिंड के 41 और ग्वालियर के 238 गांवों की खेती को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए 700 करोड़ रुपए की लागत वाली हरसी उच्च स्तरीय नहर परियोजना का काम जारी है। ग्वालियर जिले में इसका काम पूरा हो चुका है। बांध का पानी मुरार क्षेत्र में पहुंचाने के लिए जौरासी घाटी में 2.75 किलोमीटर लंबी और प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी टनल का निर्माण किया गया था। अब इस टनल से निकलकर पानी मुरार के गांवों तक पहुंच रहा है। उल्लेखनीय है कि नहर निर्माण में भ्रष्टाचार को लेकर 49 इंजीनियरों पर प्रकरण भी चला था।