ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में अशोक सिंह की दावेदारी शुरू से मजबूत मानी जा रही थी। इस बीच इंदौर संसदीय क्षेत्र से ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रत्याशी बनाए जाने की मांग पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के नजदीकी व पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और उनके समर्थकों द्वारा की जाने लगी थी। इसके जवाब में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने नजदीकियों से जयविलास पैलेस में चर्चा की, इसके कुछ देर बाद अचानक जिला कांग्रेस की आपात बैठक हुई, उसमें प्रियदर्शिनी राजे को ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनाए जाने का एक प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव पर मुहर लगाने के लिए कांग्रेस ने राहुल गांधी के पास भेज दिया था। इसके बाद प्रियदर्शिनी राजे को प्रत्याशी बनाए जाने की मांग कई संगठनों द्वारा की जाने लगी थी।
कांग्रेस की रणनीति
अशोक सिंह अभी तक ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र से तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं, इसलिए उनकी संसदीय क्षेत्र में पकड़ रही है। लेकिन आपसी गुटबाजी के चलते उनके समक्ष कांग्रेस को एकजुट करने की चुनौती रहेगी। देर से प्रत्याशी घोषित होने की वजह से कांग्रेस की भले ही धरातल पर नहीं उतरी हों, लेकिन अशोक सिंह ने अपनी तैयारियां जारी रखी थीं।
भाजपा की रणनीति
भाजपा प्रत्याशी विवेक शेजवलकर की आरएसएस में अच्छी खासी पकड़ है, लेकिन उनको भी भाजपा की आपसी गुटबाजी का सामना फिलहाल तो करना पड़ रहा है। वर्तमान में महापौर होने के कारण शहर में उनकी पहचान तो है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में उन्हें अपनी पहचान बताने के लिए मेहनत करना पड़ सकती है, क्योंकि पार्टी का जोर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक रहेगा।
अशोक के नाम पर सिंधिया और दिग्विजय आमने-सामने
राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि अशोक सिंह को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ का नजदीकी माना जाता है। इस कारण अशोक सिंह का नाम प्रबल दावेदारों के रूप में चल रहा था, लेकिन यह नाम सिंधिया के समर्थकों को रास नहीं आ रहा था। इसी के चलते मोहन सिंह राठौर और सुनील शर्मा जैसे कई नाम चर्चाओं में आ गए थे। बाद में प्रदेश सरकार के मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के भाई देवेन्द्र तोमर का नाम कांग्रेस कार्यकर्ताओं की जुबान पर आ गया था। अशोक सिंह का नाम फायनल होने में हुए विलंब के लिए कांग्रेस की गुटबाजी काफी हद तक जिम्मेदार रही है।