ग्वालियर

अधिवक्ताओं ने बताई कलेक्टर को हकीकत…अधिकारी योजनाबद्ध तरीके से हार रहे सरकारी जमीनों के केस, पेश नहीं करते रिकॉर्ड, जवाब भी नहीं देते

जमीने हारने पर कलेक्टर ने बुलाई बैठक, कहा- ओआइसी व्यवस्था सुधारें

ग्वालियरFeb 11, 2024 / 02:03 am

Rahul Adityarai Shrivastava

अधिवक्ताओं ने बताई कलेक्टर को हकीकत…अधिकारी योजनाबद्ध तरीके से हार रहे सरकारी जमीनों के केस, पेश नहीं करते रिकॉर्ड, जवाब भी नहीं देते

ग्वालियर. न्यायालय में करोड़ों की सरकारी जमीनों के केसों में हो रही हार को लेकर कलेक्टर अक्षय कुमार ङ्क्षसह ने राजस्व अधिकारियों व शासकीय अधिवक्ताओं की बैठक ली। इसमें अधिवक्ताओं ने कहा कि योजनाबद्ध तरीके से सरकारी जमीनों को हार रहे हैं। दावे में न राजस्व अधिकारी रिकॉर्ड पेश करने आते हैं और न जवाब देने। एक पक्षीय आदेश होने पर सरकारी जमीनों के मामले में हार रहो रही है।
अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता गिरीश शर्मा रिकॉर्ड के साथ बैठक में पहुंचे थे। उन्होंने उन सभी अनदेखियों को कलेक्टर के सामने रखा, जिसके कारण जमीनों के केस में हार हुई है। कलेक्टर ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि प्रभारी अधिकारी शासकीय अधिवक्ता से समन्वय बनाकर न्यायालय में जवाब पेश करें। ताकि केसों में हार न हो सके।
सरकारी जमीनों को शासन कैसे हार रहा है, इसका खुलासा पत्रिका ने किया था। एक बाद एक बेशकीमती जमीन शासन के हाथ से निकल गई हैं। सिटी सेंटर की करीब 5 हजार करोड़ की जमीन के दावे चल रहे हैं। अधिकारी गंभीरता से नहीं ले रहे थे। पत्रिका के खुलासे के बाद कलेक्टर ने बैठक बुलाई। कलेक्टर ने कहा कि सभी प्रकरणों में ओआइसी बनाए गए हैं। ओआइसी की जवाबदारी है कि वे संबंधित प्रकरण के संबंध में संपूर्ण जानकारी शासकीय अधिवक्ता को समय पर उपलब्ध कराएं, ताकि समय रहते शासन का पक्ष न्यायालय में रखा जा सके। बैठक में राजस्व अधिकारियों ने भी अपनी बात रखी। इसके साथ ही शासकीय अधिवक्ताओं द्वारा भी जवाब प्रस्तुत करने में आने वाली समस्याओं के संबंध में बताया। उन्होंने कहा ओआइसी अगर प्रकरण के संबंध में सभी जानकारी समय पर उपलब्ध करा दें तो न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है। कलेक्टर ने स्पष्ट किया कि व्यवस्थाओं में सुधार करें। नहीं करते हैं तो कार्रवाई की जाएगी।
पत्रिका ने किया जमीन खुर्दबुर्द के तरीकों का खुलासा
< पत्रिका ने जमीन के खुर्दबुर्द करने के तरीकों का भी खुलासा किया था। दो लोग जमीन विवाद का दावा पेश करते हैं। इसमें शासन को भी प्रतिवादी बनाया जाता है। जब इस मामले की सुनवाई होती है, तब शासन को एक्स पार्टी कराया जाता है। एक पक्ष केस हारता है।
< शासन के एक्स पार्टी होने से जवाब नहीं आता है। जमीन की वास्तविक स्थिति कोर्ट के समक्ष नहीं आती है। एक पक्षीय आदेश वादियों के पक्ष में हो रहे हैं।
< सरकारी जमीन में शासन का जवाब पहुंचता तो वास्तविक सामने आ जाती है। अभी तक शासन ने जो केस हारे हैं, उनमें उपस्थित नहीं है। तहसीलदार भी नहीं आते हैं।
< मंदिरों की जमीनें सबसे ज्यादा खुर्दबुर्द हुई हैं। माफिया ने दावे लगाकर अपने नाम जमीनें कराई हैं। दावे में माफी औकाफ को पार्टी ही नहीं बनाया जा रहा है। जो सरकारी वकील पैरवी के लिए जा रहे हैं, वह भी इसकी जानकारी कोर्ट को नहीं देते हैं।

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