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ग्वालियर

कोरोना का कहर : रोते हुए मजदूर बोले साहब, भूखे मरने से अच्छा है चंबल कूदकर घर पहुंचे

अगर वहां खाने-पीने और रहने की व्यवस्था होती,तो हम क्यों चोरी छिपे चंबल में कूदकर भागते

ग्वालियरApr 27, 2020 / 03:32 pm

monu sahu

500 laborers escaped by jumping in Chambal river

कोरोना का कहर : रोते हुए मजदूर बोले साहब, भूखे मरने से अच्छा है चंबल कूदकर घर पहुंचे

ग्वालियर। हम आगरा में करीब दो महीने रुके, वहां हमारे खाने-पीने के लिए न तो शासन ने कुछ किया और न ही प्रशासन ने। जिस खेत मालिक के यहां मजदूरी करते थे, उसने भी हमें भोजन नहीं दिया। हम भूखे तड़प रहे थे। पुलिस भी हमें वापस आने नहीं दे रही थी। मजबूरी में हमें चोरी छिपे चंबल नदी पार कर वापस घर लौटना पड़ा,ताकि यहां हमें कम से कम खाना तो मिल सकेगा। यह पीड़ा है, उन आदिवासी मजदूरों की, जो बीते रोज चंबल नदी के रास्ते वापस अपने घर लौटे हैं। मालूम हो कि अच्छे पैसे कमाने के लिए चंबल के मुरैना भिण्ड श्योपुर और शिवपुरी से हजारों आदिवासी मजदूर आलू खोदने के लिए आगरा जाते हैं।
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500 laborers escaped by jumping in Chambal river
इस साल भी वे आगरा गए। लेकिन,वहां मुश्किल से 15-20 दिन मजदूरी कर पाए,तभी मौसम खराब हो गया और उन्हें मजदूरी नहीं मिल पाई। दूसरी ओर कोरोना संक्रमण के कारण देश भर में लॉकडाउन होने के कारण वे वहीं फंस गए। वहां खाने के लाले पड़े तो बीते रोज बदरवास,ईसागढ़ क्षेत्र के कुछ मजदूर जान हथेली पर रखकर चंबल नदी पार कर शिवपुरी अपने घर पहुंचे।
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पत्रिका ने मजदूरों से चोरी छिपे भागकर आने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया, वहां जो मजदूरी मिली थी, उसी से उन्होंने 50-60 दिन तक बमुश्किल अपना पेट भरा। वहां न तो शासन-प्रशासन ने रुकने का कोई इंतजाम किया, न ही खाने-पीने का।जो मजदूरी मिली थी वह खत्म होने के बाद भूखों मरने की नौबत आ गई। मजदूरों के अनुसार सड़क से पुलिस आने नहीं दे रही थी, ऐसे में उन्हें चोरी छिपे छाती तक पानी में चंबल पार कर आना पड़ा।

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