पंडालों में गूंजेगी विरोध की कविताएं…
राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) में काफी लोगों के नाम नहीं हैं। इनमें असम के बराकघाटी के हिंदू बंगाली लोग भी हैं। वे इस बार हर बार की तरह दुर्गापूजा तो मनाएंगे लेकिन एनआरसी में नाम न रहने के लिए अनूठा विरोध जताएंगे। यह विरोध दुर्गापूजा पंडालों में होगा।विरोध एनआरसी के खिलाफ बैनर, पोस्टर, कविता, गीत और साहित्य के जरिए होगा।
बांग्लादेश की सीमा लगी है…
दक्षिण असम की बराक घाटी का करीमगंज जिला बांग्लादेश से सटा हुआ है। जिले की सभी पूजा कमेटियों ने हिंदू बांग्लादेशियों के नाम एनआरसी में न होने के खिलाफ देवी के समक्ष अपनी कठिनाई को रखने का निर्णय किया है। एनआरसी की अंतिम सूची 31 अगस्त को प्रकाशित हुई थी। इसमें 19 लाख लोगों के नाम नहीं आए थे। कहा जाता है कि इसमें से 11 लाख हिंदू बंगाली हैं। करीमगंज शहर में अकेले 70 पंडालों में दुर्गापूजा आयोजित होती है जबकि पूरे जिले में सात सौ से अधिक पूजा होती है। करीमगंज जिले की बांग्लादेश से 93 किमी सीमा लगी है।
विरोध की थीम पर सजेंगे पंडाल…
तीन पूजा कमेटियां इस बार अपनी स्वर्ण जयंती मना रही है। वे एनआरसी के खिलाफ विरोध पंडालों में दर्ज कराएगी। तीन क्लब सुभाष मिलनी क्लब, संघश्री और अपराजिता दुर्गा पूजा क्लब पंडालों में कविता, गीत, बैनर और पोस्टर लगाकर विरोध जताएंगे। उत्तर करीमगंज के विधायक कमलाक्ष्य दे पुरकायस्थ सुभाष मिलनी क्लब के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने पूजा कमेटियों को पूजा पंडालों में एनआरसी के खिलाफ अनूठा प्रदर्शन करने को कहा है। पुरकायस्थ ने कहा कि उन्होंने लगभग सभी पूजा कमेटियों से बात की है और उनसे अनुरोध किया है कि वे विरोध की थीम को रखते हुए पंडाल को साधारण और सुंदर बनाएं। उन्होंने कहा कि पूजा हर कोई बंगाली मनाता है।लेकिन एनआरसी में काफी लोगों के नाम न आने से इस बार उत्साह फीका है।
विरोध की कविताएं, लहुलूहान पोस्टर बढ़ाएंगे शोभा!…
करीमगंज शहर की शहरतोली दुर्गापूजा कमेटी ने एनआरसी में नाम न आने के डर से आत्महत्या करने वाले लोगों की फोटो और अखबारों की कतरनों को पंडालों में लगाने का फैसला किया है।लेखक निर्मल्य दास कहते हैं कि विरोध साहित्यकी तरीके से दज्ञज कराना चाहिए। वे इसके लिए कहानियां लिख रहे हैं। युवा कवि निरुपम शर्मा चौधरी ने कहा कि वे विरोध जताने के लिए कविता लिख रहे हैं। सुभाष मिलनी क्लब के करुणामय अर्जुन का कहना था कि उनका उद्देश्य पंडालों में आनेवाले लोगों का ध्यान एनआरसी में नाम न रहनेवाले लोगों के दुखों के प्रति आकृष्ट करना है।