घोष असम के धुबड़ी जिले के पांचमोड निवासी हैं। वैसे तो वे प्राइवेट शिक्षक हैं लेकिन मूर्ति बनाना उनका शौक है। सिर्फ 55 रुपए की लागत से उन्होंने नहाने की साबुन पर दुर्गा की मूर्ति उकेरी है। यह मूर्ति 2.25 इंच की है और इसे धुबड़ी के राजा प्रभात चंद्र बरुवा खेल मैदान में आयोजित सबूज संघ दुर्गा पूजा कमेटी की पूजा में प्रदर्शित किया जाएगा। घोष ने कहा कि मैं सदैव अनूठी मूर्ति बनाना चाहता हूं। इसलिए मैंने सबसे छोटी दुर्गा मूर्ति बनाने का फैसला किया। इसमें दुर्गा के चार बच्चे और पीछे अलंकृत पृष्ठभूमि है।
पहले भी बनाई हैं एंटिक मूर्तियां
घोष ने कहा कि ”पिछले साल मैंने नारियल के पत्तों से इको फ्रेंडली दुर्गा मूर्ति तैयार की थी। वर्ष 2017 में मैंने गन्ने का रस निकालकर फेंके जाने वाले रेशों से छह फीट की दुर्गा तैयार की थी। घोष कहते हैं कि मैं अपनी बनाई दुर्गा मूर्तियों में सिंथेटिक रंग का उपयोग नहीं करता। वे वर्ष 1992 से ही इस तरह की दुर्गा प्रतिमाएं बना रहे हैं। इसके लिए साग-सब्जी और प्लास्टिक बोतलों का भी उपयोग वे करते हैं। घोष कहते हैं कि मेरे जैसे कलाकार को सरकार का समर्थन मिले तो य़े विधा काफी लोगों तक पहुंचाई जा सकती है।”
मानव तस्करी की पीड़िताओं का दर्द किया जाहिर…
वहीं बराक घाटी के हैलाकांदी जिले में मां अन्नापूर्णा क्लब ने इस बार मानव तस्करी (Human Trafficking) की समस्या को उजागर करते हुए पंडाल सजाया है। इसके लिए वेश्यालय के दृश्य दिखाए गए है। क्लब के सचिव गौतम घोष कहते हैं कि वेश्यालय में महिलाओं की दुर्दशा को रेखांकित करने के उद्देश्य से यह थीम ली गई है। वे हमारे समाज की सबसे अवहेलित महिलाएं हैं। परंपरा के अनुसार दुर्गा प्रतिमा तैयार करने के लिए वेश्यालयों की मिट्टी संग्रह की जाती है। हम इस थीम के जरिए जागरुकता लाना चाहते हैं। इस थीम में छोटी गुड़ियाओं और पोस्टर के जरिए वेश्यालय की स्थिति पर प्रकाश डाला जाएगा। एक वेश्या की जिदंगी पिंजरे में बंद चिड़ियां की तरह है। उम्र के साथ यह अर्थहीन हो जाती है। वह समय काफी संकटपूर्ण होता है। इस व्यापार के अपराध पर पंडाल के पीछे से कमेंटरी भी होगी।