गुना

Guna Lok Sabha chunav: यहां राजमाता से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया तक ने दी कांग्रेस को चुनौती

गुना लोकसभा: राजमाता विजयाराजे सिंधिया से लेकर उनके पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया तक ने कांग्रेस को दी है चुनौती, 1967 में इंदिरा को भी राजमाता ने दी थी कड़ी टक्कर

गुनाApr 30, 2024 / 08:06 am

Manish Gite

राजेंद्र गहरवार

Guna Lok Sabha constituency: कांग्रेस से बगावत कर 1996 में मप्र कांग्रेस के नए ध्वज के साथ ग्वालियर चुनाव में उतरे माधवराव सिंधिया ने कहा था कि चंबल का पानी अन्याय बर्दाश्त नहीं करता, सच कहना बगावत है तो हम बागी हैं। चंबल के लिए यह नई बात नहीं है, मिजाज ही ऐसा रहा है। माधवराव से पहले उनकी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया के लिए कांग्रेस के साथ और कांग्रेस के बाद जंग का मैदान भी यही इलाका था।
विजयाराजे का कांग्रेस से साथ एक दशक तक ही चला। पहली बार 1957 में वे गुना से कांग्रेस सांसद चुनी गईं। 1962 में ग्वालियर का मैदान चुना और 1967 में फिर गुना से सांसद बनीं। 1967 के लोकसभा चुनाव के कुछ समय बाद ही वे कांग्रेस और सांसदी छोड़ जनसंघ में आ गईं। कांग्रेस से ऐसी कड़वाहट भर चुकी थी कि अपनी खाली सीट पर उपचुनाव में लड़ाने कांग्रेस के बागी जेबी कृपलानी को गुना बुला लिया। अपने दम पर कांग्रेस को हरा कृपलानी को विजयी बना राजनीति में अपना लोहा मनवाया।

19 चुनाव में 14 बार सिंधिया परिवार

गुना, शिवपुरी, अशोकनगर की आठों विधानसभा सीटों को मिलाकर गुना लोकसभा सीट पर अब तक दो उपचुनाव समेत 19 लोकसभा चुनाव हुए हैं। यहां 14 बार सिंधिया परिवार का कब्जा रहा। विजयाराजे 6 बार सांसद रहीं। दो बार कांग्रेस और फिर भाजपा से लड़ीं। पुत्र माधवराव सिंधिया4 बार सांसद रहे। उनके निधन से खाली सीट पर पुत्र ज्योतिरादित्य 4 बार सांसद बने। माधवराव यहां पहला चुनाव 1971 में मां की छाया में गुना से जनसंघ से लड़े। 1977 में निर्दलीय जीते। कांग्रेस में चले गए। फिर निर्वाचन क्षेत्र गुना से ग्वालियर शिफ्ट किया। ज्योतिरादित्य 4 बार कांग्रेस से संसद पहुंचे। 2019 में हार के बाद 2021 में भाजपा में चले गए। इस बार भाजपा से मैदान में हैं।

गुना बना रणक्षेत्र

प्रदेश की राजनीतिक उथल-पुथल का रणक्षेत्र गुना था। देश के पहले सत्ता के अनोखे मॉडल संविद (संयुक्त विधायक दल) सरकार की सूत्रधार वही थीं। कांग्रेस विधायकों को तोड़कर कांग्रेस के बागी गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया था। राजमाता पर 36 कांग्रेस विधायकों के अपहरण के आरोप लगे थे। विधानसभा में विधायक दल का नेता मुख्यमंत्री होता है, पर नेता सदन विजयाराजे थीं। इसी तर्ज पर 2021 में कांग्रेस विधायकों संग पोते ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस की सरकार पलट दी थी।

इंदिरा गांधी से टक्कर

चंबल के पानी का मिजाज कहें या फिर कुछ और विजयाराजे ने इंदिरा गांधी से सीधी टक्कर ली। आचार्य कृपलानी को सांसद बनाने से लेकर राज्य की सत्ता पलटकर खुली चुनौती दी। इस लड़ाई में कई राजघराने भी शामिल हो गए थे। कहते हैं, राजघरानों के विशेषाधिकार खत्म करने का कानून इसी संघर्ष की देन था। जिसने देश की राजनीति की दिशा बदल दी। इमरजेंसी में भी टकराव खुलकर सामने आई और राजमाता को जेल जाना पड़ा। तब माधवराव और उनकी मां के बीच के रिश्ते भी बिगडऩे लगे और माधवराव के कांग्रेस में शामिल होने के बाद यह सियासी खंदक की लड़ाई बन गई। तब भी दोनों ही लोकसभा के लिए निर्वाचित होते रहे पर कभी आमने-सामने नहीं आए। राजमाता ने पहले गुना को रणक्षेत्र बनाया तो माधवराव ग्वालियर से लड़ते रहे। गुना मां के सीट छोडऩे पर ही लौटे। 1984 में अटल बिहारी वाजपेयी को भाजपा ने ग्वालियर से उतारा तो माधवराव के खिलाफ राजमाता ने प्रचार किया, हालांकि वाजपेयी हार गए थे। इससे पहले 1971 में राजमाता के बुलावे पर ही वाजपेयी ग्वालियर से जनसंघ के टिकट पर लडकऱ जीते थे।

संबंधित विषय:

Hindi News / Guna / Guna Lok Sabha chunav: यहां राजमाता से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया तक ने दी कांग्रेस को चुनौती

Copyright © 2025 Patrika Group. All Rights Reserved.