क्या है मामला
प्रदेश सरकार ने गौड़-आदिवासी जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल न कर उनको पिछड़ा वर्ग में माना। कुछ समय से तो यह हाल हो गया कि अधिकतर अधिकारियों ने उनको पिछड़ा वर्ग का मानकर उनको जाति प्रमाण पत्र भी बनाकर दे दिए। हैरानी की बात है कि लगभग 25 हजार आबादी वाले गौड़ आदिवासियों में किसी की जाति अनुसूचित वर्ग की है तो उसके पुत्र को पिछड़ा वर्ग का प्रमाण पत्र दिया गया। गुना जिले के बमौरी, गुना जनपद पंचायत आदि में लगभग 25 हजार गौड़-आदिवासी समाज के लोग निवास करते हैं।
ऐसे सामने आया असमंजस
सन् 2००2 से पूर्व इस समाज के लोगों को गौड़ आदिवासी जाति का माना जाता था। भारत सरकार की अनुसूचित जनजाति की अनुसूची में सोलह नम्बर पर इनको गौड़-आदिवासी समाज के होने के रूप में दर्ज किया गया था। सन् 2००2 से पूर्व से लेकर अभी तक उनको अनुसूचित जनजाति के रूप में माना जाता रहा और इनको प्रमाण पत्र दिया था। लेकिन इसके बाद पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण बनाने से इन्हें मिलने वाली महत्वपूर्ण शासकीय योजनाओं का लाभ बंद हो गया। वहीं जानकारों का कहन है कि सरकार जनजातियों के हित में लाभ देने के लिए कई योजनाएं लाती है लेकिन उनका लाभ जनजातियों को नहीं मिल पाता है। यही कारण है कि प्रदेश में आज कई जनजातियां आज विलुप्त हो रही है। यह दूसरों में समाहित हो रही है।