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इस अष्टभुजी शिवलिंग की पूजा लंकापति रावण ने भी की थी। शिवमंदिर में यह शिवलिंग आज भी पूरे वैभव के साथ विराजमान है। पुराणों में भी बिसरख गांव का जिक्र किया गया है। रावण के गांव बिसरख में आज भी रामलीला का मंचन नहीं होता है। साथ ही उसके पुतले का दहन भी नहीं किया जाता है। यहां कोई भी सच्चे मन से मन्नत मांगता है, वह पूरी होती है। बिसरख गांव में इस बार भी रामलीला का आयोजन नहीं होता है। कुछ सालों पहले तक गांव में दशहरा के दिन मातम छाया रहता था। लेकिन अब थोड़े हालात बदले है। युवाओं की सोच बदली है। हालांकि अभी रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है। यहां रावण की पूजा की जाती है। बिसरख गांव में आज भी खुदाई के दौरान शिवलिंग निकलती है।
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