मोहित के मसकली-मसकली ने दर्शकों के हाथ हवा में लहराने पर मजबूर कर दिया
मशहूर गायक सुरेश वाडेकर का मानना है कि फिल्मी गीतों में अश्लीलता के लिए दर्शकों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। समाज ऐसे गानों या फिल्मों को देखता है तो ऐसी फिल्म/गाने बनाने वालों का मनोबल बढ़ता है। जब समाज ऐसे गानों को नकारना शुरू कर देगा तो बनाने वाले खुद-ब-खुद अपने को बनाए रखने के लिए अच्छा बनवाएंगे। गायक के पास चयन की सुविधा नहीं होती, उसे खुद को इंडस्ट्री में कायम रखने के लिए गाना ही पड़ता है।
फिल्म जगत के सशक्त हस्ताक्षर सुरेश वाडेकर रविवार को गोरखपुर में थे। गोरखपुर महोत्सव में कार्यक्रम के पूर्व उन्होंने ‘पत्रिका से बातचीत में कहा कि 90 के दशक के बाद से फिल्मी गानों के ट्रेंड में बहुत बदलाव आया लेकिन आज भी किसी गायक का मानकीकरण उन्हीं पुराने गीतों पर होता है। वह सवाल करते हैं कि कभी किसी गायक के चयन में कभी नए गाने गवाए जाते हैं। हम आज भी पुराने गानों पर निर्भर हैं। रिमिक्स आ रहे। जो किन्हीं नए गानों से ज्यादा हिट हो रहे। यह इसलिए क्योंकि आज भी पुराने गानों की मधुरता, अर्थपूर्णता नए पर भारी है। शायद लोगों का भरोसा भी नए गानों पर नहीं है तभी तो नए गानों पर कम भरोसा का ही नतीजा है कि इस साल के सर्वाधिक हिट टाॅप 20 गानों में 17 रिमिक्स हैं।
सुरेश वाडेकर मानते हैं कि रियलिटी शो से नई-नई प्रतिभाएं आ रही, उनको मंच भी मिल रहा लेकिन चकाचैंध के आगे वे अपना शत प्रतिशत नहीं दे पा रहीं और ऐसी प्रतिभाएं वक्त के साथ गुम भी हो जा रही। एक संगीत शिक्षक के नाते उनका मानना है कि रियलिटी शो में आते ही ये बच्चे स्टार बन शो करने लगते हैं। जबकि रियलिटी शो के बाद उनको और सीखने की जरूरत होती, बेहतर रियाज की आवश्यकता होती परंतु यह सब नहीं हो पाता जिसका नतीजा यह कि बेहतरीन प्रतिभाएं भी गुमनामी में चली जाती। वह सुझाव देते हैं कि रियलिटी शो में प्रतिभागियों को जो ईनाम दिया जाता है उस इनाम में उनकी ट्रेनिंग को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि ये प्रतिभाएं और बेहतर ढंग से निखर सकें।