ऐसा कहा जाता है कि महंत अवेद्यनाथ को अपनी मां का नाम याद नहीं रह गया था। क्योंकि जब वह बहुत छोटे थे तभी उनके माता पिता की अकाल मृत्यु हो गई थी। मासूम कृपाशंकर दादी की गोद में पल रहे थे। उच्चतर माध्यमिक स्तर तक शिक्षा पूर्ण होते ही दादी की भी मृत्यु हो गई। उनका मन इस संसार के प्रति उदासीन होता गया और उसमें वैराग्य का भाव भरता गया। उनके पिता जी तीन भाई थे। वह अपने पिता के एकलौते पुत्र थे। उन्होंने अपनी सम्पत्ति दोनों चाचा को बराबर बांट दिया और वैराग्य ले लिया। परिवार में अपनो के निधन और कम उम्र में वैराग्य लेने के बाद वह 4 धाम की यात्रा पर निकल गए
किशोर अवस्था में ही महंत अवेद्यनाथ ने बद्रीनाथ, केदार नाथ गंगोत्तरी यमुनोत्री आदि तीर्थ स्थलों की यात्रा की, कैलाश मानसरोवर की यात्रा से वापस आते समय अल्मोड़ा में उन्हें हैजा हो गया था। जब वे अचेत हो गए तो साथी उन्हें उसी दशा में छोड़ कर आगे बढ़ गए। तबीयत ठीक हुई तो महंत जी अमरता के ज्ञान की खोज में भटकने लगे। इसी दौरान उनकी मुलाकात योगी निवृत्तिनाथ जी से हुई और उनके योग, आध्यात्मिक दर्शन तथा नाथ पंथ के विचारों से महंत जी प्रभावित होते चले गए। योगी निवृत्तिनाथ जी के साथ रह कर ही महंत जी ने तत्कालीन गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ के बारे में सुना जो योगी निवृत्तिनाथ को चाचा कहते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि वह योगी गम्भीरनाथ के शिष्य थे।
योगी निवृत्तिनाथ से दिग्विजयनाथ के बारे में सुनकर वह उनसे मिलने के लिए गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर पहुंचे। यहां दिग्विजयनाथ से मुलाकात करने के तुरंत बाद महंत दिग्विजयनाथ ने उन्हें अवेद्यनाथ ने उन्हें अपना अगला उत्तराधिकारी घोषित करना चाहते थे। लेकिन नाथ संप्रदाय की शिक्षा और दिक्षा पूरी न होने के कारण वह उन्हें तुरंत उत्तराधिकारी नहीं बना सकें। हालांकि करीब 2 साल बाद 8 फरवरी 1942 शिक्षा पूरी करने के बाद मंहत दिग्विजयनाथ ने कृपाशंकर को अपना शिष्य बनाने के साथ उत्तराधिकारी बनाया और नया नाम दिया अवेद्यनाथ। इसके बाद गोरखनाथ मंदिर की पूरी व्यवस्था उठाई। दिग्विजयनाथ के निर्देशन में वह जल्द ही मंदिर से जुड़े विभिन्न धर्म स्थानों की देखरेख में माहिर हो गए।
1944 में गोरखपुर में हिंदू महासभा का ऐतिहासिक अधिवेशन हुआ जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी शामिल हुए। यह काल खंड वह था जब देश के विभाजन की मांग जोर पकड़ रही थी और संप्रदायिक दंगे हो रहे थे। ऐसे में अवेद्यनाथ को गोरखनाथ मंदिर की व्यवस्था संभालने के अलावा खुद को राष्ट्रीय आंदोलन में समर्पित करने का भी अवसर मिला।
1948 में महात्मा गांधी की हत्या हो गई। सरकार ने हत्या की साजिश में दिग्विजयनाथ को गिरफ्तार करके जेल में बंद कर दिया। गोरखनाथ मंदिर की चल अचल संपत्ति जब्त कर ली गई। उस दौरान महंत अवेद्यनाथ ने नेपाल में रहकर गोपनीय तरीके से गोरखनाथ मंदिर की व्यवस्था और महंत दिग्विजयनाथ को बेकसूर साबित करने का प्रयास किया।
लोग बताते है कि गांधी की हत्या के बाद जिस तरह से उन पर और गोरखनाथ मठ पर सरकार का शिंकजा कसा तो उन्हें समझ आ गया कि अपना आधिपत्य बनाने के लिए सत्ता में बने रहना जरुरू है। इसके बाद वह पहली बार 1962 में गोरखपुर की मानीराम विधानसभा क्षेत्र से विजयी होकर उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे और लगातार 1977 तक मानीराम से विजयी होते रहे। 1980 में महंत अवेद्यनाथ ने मीनाक्षीपुरम में हुए धर्म परिवर्तन से विचलित होकर राजनीति से सन्यास लेने का ऐलान किया और हिंदू समाज की सामाजिक विषमता को दूर करने में लग गए। इस मंडल में वह एकलौते शख्स थे जिन्होंने पांच बार विधानसभा तथा तीन बार लोकसभा का चुनाव जीता। यहां तक की ‘जनता लहर’ में भी वह अपराजेय रहे।
महंत अवेद्यनाथ मीनाक्षीपुरम में हुए धर्म परिवर्तन से विचलित हो गए। इसके बाद 8 मार्च 1994 को उन्होंने हिंदू समाज की सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए काशी के डोमराजा सुजीत चौधरी के घर उनकी मां के हाथों का भोजन खाकर उन्होंने छुआछूत की धारणा पर जोरदार चोट किया। पटना के महावीर मंदिर में दलित पुजारी की प्रतिष्ठा का प्रयास किया।
1989 में वी पी सिंह के अगुवाई में लोकसभा का चुनाव लड़ा जा रहा था। उसी समय देश में हिंदूओं की दशा देखकर चुनाव में उतरने का ऐलान किया। 1989 से लेकर 1998 तक वह लगातार सांसद बनते रहे। 1998 में उन्होंने गोरक्षपीठ के साथ-साथ गोरखपुर की सांसदी भी योगी आदित्यनाथ को सौंप दिया।
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90 के दशक में हुई योगी आदित्यनाथ से मुलाकातमहंत अवेद्यनाथ राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय होने के कारण उत्तराखंड के इलाकों में प्रवचन और मंदिर आंदोलन के प्रचार के लिए जाते रहते थे। इन सबको संघ करवाता था। उन दिनों ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे अजय सिंह बिष्ट इन सबमें खूब सक्रिय रहते और यहीं से उनका महंत चाचा से स्नेह बढ़ता गया। अवैद्यनाथ को भी उनमें अपना वारिस नजर आया और उन्होंने अजय सिंह बिष्ट को दिक्षा देकर अपना शिष्य बनाया और नया नाम दिया योगी आदित्यनाथ और आज यहीं योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के वर्तमना और लोकप्रिय मुख्यमंत्री है।