14 जनवरी से लगने वाले खिचड़ी मेले में कोविड-19 संबंधित गाइडलाइन का पालन किया जाएगा। स्वास्थ्य विभाग की टीम मेला परिसर में कैंप भी लगाएगी। साथ ही परिवहन की भी सुविधा का इंतजाम होगा ताकि मेले में आए किसी श्रद्धालु को कोई समस्या आए तो फौरन मदद पहुंचाई जा सके। इस संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर जिलाधिकारी ने मेले के सिलसिले में बैठक की है।
कैसे शुरू हुई गुरू गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा खिचड़ी को मकर संक्रांति के पर्व के नाम से भी जाना जाता है। गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा त्रेतायुग से जुड़ी है। हिंदू मान्यता के मुताबिक एक बार शिव अवतारी गुरु गोरखनाथ भिक्षा मांगते हुए हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मशहूर ज्वाला देवी मंदिर पहुंचे। गुरु गोरखनाथ को देखकर देवी साक्षात प्रकट हो गईं। उन्होंने गोरखनाथ को भोजन के लिए आमंत्रित किया। आमंत्रण में कई तरह के व्यंजन को देखकर गुरु गोरखनाथ ने भोजन करने से इनकार कर दिया। उन्होंने भिक्षा में लाए हुए दाल और चावल से बने भोजन को ग्रहण करने की इच्छा जताई। इसके बाद देवी ने गुरु गोरखनाथ की इच्छा का सम्मान करते हुए भिक्षा में लाए चावल-दाल से भोजन पकाने का निर्णय लिया।
इस बीच गुरु गोरखनाथ भिक्षा मांगते हुए गोरखपुर आ जाते हैं। यहां उन्होंने राप्ती और रोहिणी नदी के संगम पर एक स्थान का चयन करते हुए अपना अक्षय पात्र रख दिया और साधना में लीन हो गए। वह तपस्या करने लगे। उधर मकर संक्रांति के पर्व पर लोग उस अक्षय पात्र में अन्न डालने लगे। जब काफी मात्रा में अन्न डालने के बाद भी पात्र नहीं भरा तो लोग योगी गोरखनाथ का चमत्कार मानते हुए उनके सामने सिर झुकाने लगे। तभी से इस तपोस्थली पर मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई, जो कि आजतक चली आ रही है।
यह मान्यता भी है प्रचलित खिचड़ी को लेकर एक अन्य मान्यता भी प्रचलित है कि एक बार जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी आक्रमण कर रहे थे, तो लगातार संघर्ष की वजह से नाथ योगी भोजन नहीं कर पाते थे। वजह थी आक्रमण के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिलना। कहा जाता है कि तब योगियों ने गुरु गोरखनाथ का ध्यान किया तो उन्हें दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की प्रेरणा मिली।
नेपाल के राज परिवार से आती है खिचड़ी गोरखनाथ में चढ़ने वाली खिचड़ी हर साल नेपाल के राज परिवार, नेपाल नरेश से आती है। इसके पीछे एक बड़ा कारण है। दरअसल, नेपाल के राजा के राजमहल के पास ही गुरु गोरखनाथ गुफा बनाकर तप करते थे। एक बार नेपाल नरेश ने अपने पुत्र पृथ्वी नारायण शाह से कहा कि अगर तुम गुफा में गए तो वहां के योगी जो मांगे उसे मना मत करना। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए बालक गुफा की ओर बढ़ गया। वहां पहुंचने पर गुरु गोरखनाथ ने उससे दही मांगी। पृथ्वी जब अपने माता-पिता के साथ दही लेकर गुफा में पहुंचे तो गुरु गोरखनाथ ने बालक को दही देते हुए इसे पीने को कहा लेकिन भूलवश दही बालक से गिरकर गोरखनाथ बाबा के चरणों में गिर गई। बच्चे को निर्दोष मानते हुए गुरु गोरखनाथ उस दही को स्वीकार करते हुए नेपाल के एकीकरण का वरदान दे दिया। तभी से नेपाल के राज परिवार की ओर से हर वर्ष खिचड़ी भेजी जाती है। यह एक परंपरा के तौर पर प्रचलित है जिसका आज भी पालन होता है। वहीं गोरखनाथ मंदिर की तरफ से भी नेपाल के राज परिवार को मंदिर में बना एक विशेष प्रसाद भेजा जाता है।