बेलीपार क्षेत्र के कसिहार निवासी सीआरपीएफ जवान 38 वर्षीय मनीष तिवारी 29 अक्टूबर को अपने पैतृक गांव में पत्नी प्रियंका त्रिपाठी तथा बच्चों से मिलकर ड्यूटी के लिए दिल्ली चले गए। 30 अक्टूबर को दिल्ली में ड्यूटी के दौरान अचानक तबीयत खराब होने पर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां इलाज के दौरान निधन हो गया था। वह दिल्ली डायरेक्टेड में सीआरपीएफ में हवलदार के पद पर तैनात थे।जहां से सैनिक सम्मान के बाद उनका पार्थिव शरीर हवाई मार्ग से लखनऊ एयरपोर्ट लाया गया। वहां से सीआरपीएफ के जवानों द्वारा सड़क मार्ग से गांव लाया गया।
शहीद का हुआ अंतिम संस्कार पार्थिव शरीर निवास स्थल से सुबह दस बजे अंतिम संस्कार के लिए मलांव स्थित चन्दा घाट के लिए निकला। पार्थिव शरीर के साथ शव यात्रा में बड़ी संख्या में लोग शामिल रहे। इस दौरान भारत माता की जय, वंदे मातरम, भारत वीरों की जय तथा जब तक सूरज चांद रहेगा मनीष तेरा नाम रहेगा आदि नारे लगाते रहे। मुखाग्नि जवान के मासूम जुड़वा बेटे राम और श्याम ने दी। इस दौरान CRPF जवान इंस्पेक्टर शिवेंद्र सिंह ने पार्थिव शरीर के ऊपर से तिरंगे को ससम्मान उठाकर परिजनों को दिया।
पिता भी पंजाब में आतंकवाद के दौर में शहीद हुए थे मनीष त्रिपाठी के पिता स्वर्गीय रामसूरत त्रिपाठी चार भाई थे। जिनमें तीन भाई सीआरपीएफ में तैनात थे। मनीष त्रिपाठी के पिता 8 अप्रैल 1990 को पंजाब में उग्रवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। वही मनीष तीन भाइयों में सबसे छोटे थे और उनके बड़े भाई स्व. दीनानाथ त्रिपाठी ने भी सीआरपीएफ में सब इंस्पेक्टर के पद पर रहते हुए अंतिम सांस ली थी। दूसरे नंबर के बड़े भाई मनोज त्रिपाठी झारखंड में सीआरपीएफ में हवलदार हैं। मनीष त्रिपाठी की तीन बच्चे बड़ी लड़की 13 वर्षीय आकांक्षा तथा दो जुड़वा पुत्र 6 वर्षीय राम और श्याम है।
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित थे मनीष वर्ष 2006 में मुजफ्फरपुर बिहार से सीआरपीएफ जॉइन करने के बाद 2015 में मनीष तिवारी को झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ की जा रही कार्रवाई में 5 लाख के इनामी नक्सली को बारूदी सुरंग द्वारा मार गिराए जाने की साहसिक घटना को अंजाम देने पर तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय वीरता पदक से दिल्ली में सम्मानित किया गया था।