होता रहा है गोरखनाथ मंदिर में सहभोज हरि प्रबोधनी एकादशी व्रत के पारण के अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में साधना भवन के सामने स्थित आंवला पेड़ के नीचे सहभोज का आयोजन किया गया। परंपरागत रूप से प्रत्येक वर्ष गोरखनाथ मंदिर में हरि प्रबोधनी एकादशी व्रत के बाद पारण के लिए द्वादशी के दिन दोपहर में आंवला पेड़ के नीचे गोरक्षपीठाधीश्वर की उपस्थिति सहभोज का आयोजन होता रहा है।
‘हरि प्रबोधिनी एकादशी’ का माहत्म्य कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘हरि प्रबोधिनी एकादशी’ कहा जाता है। इस दिन व्रत करने वाले मनुष्य को हजार अश्वमेध और 100 राजसूय यज्ञों को करने के बराबर फल मिलता है। इस चराचर जगत में जो भी वस्तुएं अत्यंत दुर्लभ मानी गयी है उसे भी मांगने पर ‘हरिप्रबोधिनी’ एकादशी प्रदान करती है।
आरंभ हो जाते हैं मांगलिक कार्य आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक के मध्य श्रीविष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं। प्राणियों के पापों का नाश करके पुण्य वृद्धि और धर्म-कर्म में प्रवृति कराने वाले श्रीविष्णु कार्तिक शुक्ल पक्ष ‘प्रबोधिनी’एकादशी को निद्रा से जागते हैं, तभी सभी शास्त्रों ने इस एकादशी को अमोघ पुण्यफलदाई बताया गया है। इसी दिन से सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह,मुंडन,गृह प्रवेश,यज्ञोपवीत आदि आरम्भ हो जाते हैं।
कार्य-व्यापार में उन्नति,सुखद दाम्पत्य जीवन,पुत्र-पौत्र एवं बान्धवों की अभिलाषा रखने वाले गृहस्थों और मोक्ष की इच्छा रखने वाले संन्यासियों के लिए यह एकादशी अक्षुण फलदाई कही गयी है। अतः इस दिन श्रीविष्णु का आवाहन-पूजन आदि करने से उस प्राणी के लिए कुछ भी करना शेष नहीं रहता।