सत्र की शुरूआत में प्रतिष्ठित रामनाथ गोएनका अवार्ड पा चुकी चित्रा त्रिपाठी ने अपने अनुभव साझा किए। डीडीयू से रक्षा अध्ययन में पीजी की गोल्ड मेडलिस्ट चित्रा ने बताया कि उन्होंने स्क्रीन पर आने का शौक था। सबसे पहले उन दिनों गोरखपुर में चलने वाले एक स्थानीय केबल चैनल सत्या टीवी से सौ रूपये प्रति बुलेटिन से कॅरियर की शुरूआत की। बाद में दूरदर्शन ने छह सो रूपये प्रति बुलेटिन का ब्रेक दिया। एक दोपहर हर्ष सर ने फोन कर बताया कि एक न्यूज चैनल में एंकर की वैकेंसी निकली है। यहीं से कॅरियर में छलांग लगनी शुरू हुई और फिलहाल आज नेशनल चैनल का प्राइम टाइम एंकर हू। छोटे शहरों के लड़कियों को खासकर घर से बाहर निकलने में कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती हैं इस पर भी चित्रा ने अपने अनुभवा साझा किये। कॅरियर मेंकिंग में दोस्तों का कितना अहम रोल होता है यह बताते हुए चित्रा ने बताया कि उनके दोस्त उनकी जिंदगी में बेहद अहम रोल अदा करते रहे हैं। यहां तक कि शुरूआती दिनों में जब एंकरिंग में तमाम कपड़ों की जरूरत होती थी तो वह दोस्तों के कपड़े पहनकर एंकरिंग किया करती थीं।
चित्रा ने साझा किया कि किस प्रकार वह दिल्ली जाने का सपना पाले हुए थी लेकिन घर की माली हालत उसमें आड़े आ रही थी। लेकिन चित्रा के पिता ने कहा कि तुम्हारी शादी के लिए कुछ पैसे बचा के रखे हैं फिलहाल उसे तुम अपने कॅरियर में इन्वेस्ट कर लो। चित्रा ने बताया कि मां बाप का उन पर किया यह भरोसा उनके कॅरियर में टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। चित्रा ने यह भी बताया कि संघर्ष के दिनों में आपको लोगों की टिप्पड़ियां भी सुननीं पड़ सकती है लेकिन आपको उन आलोचनाओं से घबराने की बजाय अपनी धुन में लगे रहना है।
अपनी सफलता के सफर की कहानी बयां करते हुए सुशील राजपाल ने कहा कि गोरखपुर से दिल्ली का सफर बेहद कठिन था। तमाम बार ऐसे मौके आए जब लोग प्रोत्साहित करने की बजाय आपको हतोत्साहित करते है। राजपाल ने बताया कि उन्हें पढ़ाई के दिनों से ही फिल्में बनाने का सपना आया करता था। फिल्म निर्माता बनने का सपना लेकर वह दिल्ली गये तो उन्हें वह सपोर्ट नहीं मिला जिसकी वह उम्मीद किया करते थे। यहां तक कि उनके हाॅस्टल के लोग उन्हें यह तक नहीं बताते थे कि एफटीआई ज्वाइन करना ठीक रहेगा। लेकिन उनकी लगन और कुछ करने की इच्छा से वह लगे रहे।
उन्होने बताया कि युवावस्था में आप पर आपके खुद के सपनों के साथ साथ लोगों की उम्मीदों का भी बोझ होता है। उनको अपनी ताकत बनाना है और वह करना है जो आपके दिल से निकलता है।
प्रेस क्लब आॅफ इंडिया के जनरल सेक्रेटरी संजय सिंह ने बड़े बेबाक अंदाज में अपने सफर की दास्तां सुनाई। संजय सिंह ने कहा कि जनसरोकारों के प्रति पीड़ा ने उनको पत्रकार बनने पर मजबूर किया। मां बाप के दुलार में युवावस्था में वह मस्तमौला प्रकृति के थे और उनकी इस प्रकृति ने उन्हें बेहतर पत्रकार बनने में मदद की। उन्होंने कहा कि कोई लक्ष्य बहुत बड़ा नहीं होता है। यदि आप दिल से उसे पाना चाहेंगे तो सारी दुनिया उससे मिलाने की साजिश करने में जुट जाएगी। युवाओं को उन्होंने संदेश दिया कि धैर्य रखें हड़बड़ी में न रहें। कोई भी सफल व्यक्ति एक दिन में सफल नहीं हो जाता है। इसके पीछे संघर्ष और परिश्रम की एक लंबी यात्रा होती है। छोटे बड़े शहरों की बात नहीं होती है बल्कि आपका लक्ष्य और उसके लिए दिल बड़ा होना चाहिए।
अमृता ने गोरखपुर के युवाओं से कहा कि यदि वे सूरज की तरह चमकना चाहते हैं तो उन्हें सूरज की तरह जलना भी होगा। लेकिन आपको अपने लक्ष्य पर टिके रहना होगा। पूरी शिद्दत से उसके लिए जुटे रहना होगा।
अमृता ने बताया कि उसकी जिंदगी में एक बड़ी ख्वाहिश थी कि लोग उन्हें उनके नाम से जानें। आज जो मुकाम हासिल है वह एक दिन में नहीं आया। इसके पीछे संघर्ष की एक लंबी दास्तां हैं। उन्होंने युवाओं से अपील की बस घबराना नहीं, जो ठानो उसके पीछे लगे रहो।
अमृता ने युवाओं को कहा कि वे असफलता से सींखें। फेल स्पेलिंग को उन्होंने वर्णन किया कि यह फस्र्ट अटेम्प्ट इन लर्निंग हैं। अमृता ने अपनी सफलता के पीछे अपने परिजनों और अपने पति के सहयोग को बहुत महत्वपूर्ण बताया।
अपनी सफलता के सफर की कहानी बयां करते हुए सुशील राजपाल ने कहा कि गोरखपुर से दिल्ली का सफर बेहद कठिन था। तमाम बार ऐसे मौके आए जब लोग प्रोत्साहित करने की बजाय आपको हतोत्साहित करते है। राजपाल ने बताया कि उन्हें पढ़ाई के दिनों से ही फिल्में बनाने का सपना आया करता था। फिल्म निर्माता बनने का सपना लेकर वह दिल्ली गये तो उन्हें वह सपोर्ट नहीं मिला जिसकी वह उम्मीद किया करते थे। यहां तक कि उनके हाॅस्टल के लोग उन्हें यह तक नहीं बताते थे कि एफटीआई ज्वाइन करना ठीक रहेगा। लेकिन उनकी लगन और कुछ करने की इच्छा से वह लगे रहे।
उन्होने बताया कि युवावस्था में आप पर आपके खुद के सपनों के साथ साथ लोगों की उम्मीदों का भी बोझ होता है। उनको अपनी ताकत बनाना है और वह करना है जो आपके दिल से निकलता है।
प्रेस क्लब आॅफ इंडिया के जनरल सेक्रेटरी संजय सिंह ने बड़े बेबाक अंदाज में अपने सफर की दास्तां सुनाई। संजय सिंह ने कहा कि जनसरोकारों के प्रति पीड़ा ने उनको पत्रकार बनने पर मजबूर किया। मां बाप के दुलार में युवावस्था में वह मस्तमौला प्रकृति के थे और उनकी इस प्रकृति ने उन्हें बेहतर पत्रकार बनने में मदद की। उन्होंने कहा कि कोई लक्ष्य बहुत बड़ा नहीं होता है। यदि आप दिल से उसे पाना चाहेंगे तो सारी दुनिया उससे मिलाने की साजिश करने में जुट जाएगी। युवाओं को उन्होंने संदेश दिया कि धैर्य रखें हड़बड़ी में न रहें। कोई भी सफल व्यक्ति एक दिन में सफल नहीं हो जाता है। इसके पीछे संघर्ष और परिश्रम की एक लंबी यात्रा होती है। छोटे बड़े शहरों की बात नहीं होती है बल्कि आपका लक्ष्य और उसके लिए दिल बड़ा होना चाहिए।
अमृता ने गोरखपुर के युवाओं से कहा कि यदि वे सूरज की तरह चमकना चाहते हैं तो उन्हें सूरज की तरह जलना भी होगा। लेकिन आपको अपने लक्ष्य पर टिके रहना होगा। पूरी शिद्दत से उसके लिए जुटे रहना होगा।
अमृता ने बताया कि उसकी जिंदगी में एक बड़ी ख्वाहिश थी कि लोग उन्हें उनके नाम से जानें। आज जो मुकाम हासिल है वह एक दिन में नहीं आया। इसके पीछे संघर्ष की एक लंबी दास्तां हैं। उन्होंने युवाओं से अपील की बस घबराना नहीं, जो ठानो उसके पीछे लगे रहो।
अमृता ने युवाओं को कहा कि वे असफलता से सींखें। फेल स्पेलिंग को उन्होंने वर्णन किया कि यह फस्र्ट अटेम्प्ट इन लर्निंग हैं। अमृता ने अपनी सफलता के पीछे अपने परिजनों और अपने पति के सहयोग को बहुत महत्वपूर्ण बताया।
संजय सिंह की पुस्तक का विमोचन
इस सत्र में संजय सिंह की दो पुस्तकों का भी विमोचन किया गया।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार गीताश्री, कुमार हर्ष, आलोक, शैवाल शंकर श्रीवास्तव, डॉ. उत्कर्ष श्रीवास्तव, अनुपम सहाय, संदीप श्रीवास्तव, अमित श्रीवास्तव और डाॅ रजनीकांत श्रीवास्तव भी मौजूद थे।
इस सत्र में संजय सिंह की दो पुस्तकों का भी विमोचन किया गया।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार गीताश्री, कुमार हर्ष, आलोक, शैवाल शंकर श्रीवास्तव, डॉ. उत्कर्ष श्रीवास्तव, अनुपम सहाय, संदीप श्रीवास्तव, अमित श्रीवास्तव और डाॅ रजनीकांत श्रीवास्तव भी मौजूद थे।
उन्होंने कहा कि आज बॉलीवुड की तमाम प्रसिद्ध हस्तियां जो अभिनय की बारीकियों से दर्शकों को रूबरू करवाती हैं, फिल्मों में आने के पहले थियेटर में तप के निखर पाई हैं।
शिवकेश मिश्र ने कहा की कॉमर्शियल दुनिया में नाटक फिट हो सके इसके लिए कुछ सशक्त प्रस्तुतकर्ताओं की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि किताब से अधिक आकर्षण स्टेज का होता है। थिएटर लोगों के अंदर की भावनाओं को झकझोरता है और जब भावनाएं कम हुई है तो थिएटर का थोड़ा नीचे आना अस्वाभाविक नहीं है।
कार्यक्रम का मॉडरेशन प्रसिद्ध पत्रकार राजशेखर ने किया।
चर्चा के दौरान उन्होंने कहा की नख- शिख वर्णन को छोड़ दें तो पुरुष का लेखन संदेह के घेरे में है। ब्लॉगर निकिताशा कौर ने पुरुषों की एकमेववादी सोच पर सवाल खड़े किए और कहा कि लड़कियों के लिए क्या अच्छा है क्या बुरा है यह तय करने का अधिकार पुरुषों को क्यों दिया जाए। उन्होंने एक कथन का उल्लेख किया और कहा कि अच्छी लड़कियां स्वर्ग जाती हैं और बुरी लड़कियां कहीं भी जा सकती हैं तो फिर बुरा बनने में हर्ज क्या है ?
मशहूर कवियत्री रंजना जायसवाल ने कहा कि स्त्री विमर्श जरूर बदला है। पहले जहां विमर्श में पुरुष के खिलाफ होने की बातें होती थी या पुरुष के विरोध की बातें होती थी वहीं अब हम केवल पुरुष के दोहरे बर्ताव के खिलाफ हैं और इसमें पुरुष को साथ लेकर चलने की बात है ना कि उसके विरोध की। रंजना जायसवाल ने कहा कि हम पुरुष में केवल संवेदना चाहते हैं उनसे केवल बराबरी का दर्जा और सम्मान चाहते हैं । हमारा मानना है कि स्त्री-पुरुष हर पक्ष में समान भागीदार हैं और स्त्री विमर्श हो या स्त्री अधिकारों की लड़ाई की बात हो, यह लड़ाई स्त्री अकेले नहीं लड़ सकती है। उन्होंने कहा कि समानता का व्यवहार हो, तो फिर संघर्ष ही कहां रहेगा।
लेखिका सोनाली मिश्रा ने पुरुष लेखन में भेदभाव की तरफ इशारा किया और कहा पुरुष लेखन के लिए अलग नियम हो रहे हैं और स्त्री लेखन के लिए अलग नियम है। पुरुष अपनी लेखनी से भी भेदभाव करता है और स्त्री को या तो श्रद्धा का केंद्र बनाता है या फिर अबला बनाता है।
मालविका हरि ओम ने चंद पंक्तियों से अपने पक्ष की शुरुआत की ।
उन्होंने सुनाया कि जब तक होठों पर चुप्पी थी मौसम बड़ा सुहाना था, जैसे हक की बात उठाई बदले रंग बहारों के।
वास्तव में मालविका ने स्त्री विमर्श के विरोध में उठने वाली आवाजों को इशारा किया था। उन्होंने कहा कि स्त्री विमर्श भले बदल गया हो लेकिन स्त्री की हालात अभी भी वही है।
स्त्री विमर्श के दौरान पाया हम पश्चिम की ओर देखते हैं और तुलना करते हैं लेकिन यह तुलना वाजिब नहीं है उन्होंने आशंका जताई स्त्री विमर्श कहीं फैशन बनकर न रह जाए। डॉक्टर मालविका ने समाज से अपेक्षा की की स्त्री विमर्श के दौरान मुद्दों की प्राथमिकता तय होनी चाहिए। चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए निकिताशा ने कहा की फेमिनिज्म से मुद्दे गायब हो रहे हैं।