गोरखपुर

Shri Prakash Shukla: यूपी का वो डॉन, जिसकी कहानी पढ़ आप कहेंगे, ये तो जिद्दी फिल्म की स्टोरी है

Shri Prakash Shukla: श्रीप्रकाश शुक्ला की जिंदगी में अपराध की दुनिया में जाने से एनकाउंटर तक काफी कुछ फिल्मी है। उसके डॉन बनने की शुरुआत तो एकदम जिद्दी फिल्म जैसी है।

गोरखपुरMar 09, 2023 / 01:56 pm

Rizwan Pundeer

गैंगेस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला(बायें) जिद्दी फिल्म का पोस्टर(दायें)

1997 में एक फिल्म आई थी जिद्दी। फिल्म में सनी देओल एक ऐसे डॉन देवा के रोल में थे, जो सीएम तक के लिए चिंता का सबब बन जाता है। देवा के फिल्म में अपराध की दुनिया में कदम रखने की शुरुआत उसकी बहन के साथ छेड़छाड़ से होती है। फिल्म में जो हुआ वो यूपी के गोरखपुर में इससे 4 साल पहले हकीकत में हो चुका था।
फिल्म जिद्दी में देवा की बहन को इलाके का गुंडा छेड़ता है। बहन रोते हुए घर आती है और फिर देवा जाकर उसको पीटते हुए उसका हाथ उखाड़ लेता है। इस घटना के बाद 4 साल देवा जेल में रहता है। जब जेल से लौटता है तो इतना बड़ा डॉन बन जाता है कि सीएम तक का ध्यान उस पर जाता है।
अब जिद्दी की रिलीज से 4 साल पहले यानी 1993 के गोरखपुर के मामखोर गांव में आपको ले चलते हैं। गांव में श्रीप्रकाश शुक्ला नाम का 20 साल का लड़का रहता है। पिता सरकारी टीचर हैं तो जाहिर है कि उनका ध्यान अपने बच्चों को पढ़ाने पर रहेगा।

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बहन को गुंडे ने छेड़ा, श्रीप्रकाश ने उसकी हत्या कर दी
साल 1993 में श्रीप्रकाश अपने घर के कमरे में बैठा था कि बाहर से बहन के रोने की आवाज आई। बहन रोते हुए पिता और मां से बता रही थी कि राकेश तिवारी नाम के आदमी ने सरेआम सड़क पर उसके साथ बदतमीजी की।
आगे की बात बताने से पहले आपको ये बता देना जरूरी है कि ये राकेश तिवारी कौन था। राकेश तिवारी नाम का ये गुंडा उस वक्त के गोरखपुर और पूर्वांचल के बाहुबली नेता वीरेंद्र प्रताप शाही का खास था। ऐसे में वो जब जिसके साथ चाहे बदतमीजी करे, उसे कुछ कहने में सब डरते थे।
अब वापस श्रीप्रकाश के घर आते हैं। राकेश तिवारी का नाम सुनकर श्रीप्रकाश के पिता अपनी बेटी को ही समझाने लगते हैं कि बुरे लोगों के क्या मुंह लगना। जो हुआ, उसे भूल जा।
घर में ये सब चल रहा था कि श्रीप्रकाश घर से निकलता है। उसी रास्ते पर जाता है, जो उसकी बहन के स्कूल का रास्ता है। जहां से वह कुछ देर पहले वह रोते हुए लौटी थी। श्रीप्रकाश देखता है कि राकेश रास्ते के किनारे बैठा है। श्रीप्रकाश जाकर राकेश को पीटना शुरू कर देता है और फिर गोली मारकर उसकी हत्या कर देता है। दिनदहाड़े वीरेंद्र शाही के खास आदमी की हत्या होती है तो पूरे गोरखपुर में सनसनी फैल जाती है।

हरिशंकर तिवारी ने दी पहली शरण
एक 20-21 साल के लड़के ने जिस तरह से सरेआम ये हत्या की थी। उससे अपराध की दुनिया में गोरखपुर ही नहीं पूरे पूर्वांचल में उसका नाम एकदम से बड़ा हो गया। राकेश की हत्या के बाद एक तरफ पुलिस श्रीप्रकाश को ढूंढ़ रही थी तो पूर्वांचल के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी को भी उसकी तलाश थी। हरिशंकर नहीं चाहते थे कि श्रीप्रकाश पुलिस के हत्थे चढ़े। वह किसी तरह से श्रीप्रकाश को बचा लेना चाहते थे। हरिशंकर क्यों श्रीप्रकाश को बचाना चाहते थे, इसकी वजह बता दें फिर आगे बढ़ते हैं।
दरअसल, 1980 और 90 के दशक में गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही की अदावत खूब मशहूर थी। इसे ब्राह्मण बनाम ठाकुर की लड़ाई की तरह भी देखा जाता था। श्रीप्रकाश ने वीरेंद्र शाही के खास आदमी को मारा डाला था तो हरिशंकर तिवारी को लगा कि ये लड़का उनके काम का है।
हरिशंकर तिवारी ने श्रीप्रकाश से संपर्क कर भी लिया और उसको कुछ दिन के लिए ऐसे सुरक्षित स्थान पर भेज दिया, जहां पुलिस न पहुंच सके। मामला ठंडा होने के कुछ महीने बाद वो लौटा। अब श्रीप्रकाश एकदम ही बेलगाम हो चुका था। उसने दिनदहाड़े अपराध शुरू कर दिए।
लगातार हत्याओं में श्रीप्रकाश का नाम आ रहा था। यहां तक कि 1997 में लखनऊ में वीरेंद्र शाही की भी हत्या हो गई। शाही को मारने का आरोप भी श्रीप्रकाश शुक्ला पर लगा, जिसने उसको प्रदेश सरकार की नजरों में भी ला दिया।


यूपी के बाद बिहार में फैलाया आतंक
हरिशंकर तिवारी से भी श्रीप्रकाश की कुछ दिनों तक ही बनी। जितनी तेजी से श्रीप्रकाश बढ़ रहा था, उसे किसी के लिए भी काबू में रखना मुश्किल था। हरिशंकर तिवारी से उसकी अनबन हो गई। इसके बाद श्रीप्रकाश शुक्ला को साथ मिला बिहार के माफिया सूरजभान का।
श्रीप्रकाश की बिहार में एंट्री हुई तो अपराध का ग्राफ बढ़ने लगा। बड़े लोग निशाना बनाए जाने लगे। जून 1998 को पटना में बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को गोलियों से भून दिया गया। हत्या में नाम आया श्रीप्रकाश शुक्ला का।

सीएम की ही ले ली थी सुपारी!
दहशत का दूसरा नाम बन चुके श्रीप्रकाश शुक्ला के बारे में एक खबर अखबारों में आई कि उसने सीएम कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी 5 करोड़ में ले ली है। इसमें कितनी सच्चाई थी, ये आज तक पता नहीं चल सका, लेकिन इस खबर के बाद यूपी पुलिस ने किसी भी कीमत पर श्रीप्रकाश को खत्म करने की ठान ली।

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मई 1998 को यूपी पुलिस एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के 50 जवानों की एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाई। टीम से कहा गया कि श्रीप्रकाश शुक्ला को किसी भी कीमत पर जिंदा या मुर्दा पकड़ना है।

गर्लफ्रेंड से मिलने जा रहा था, तभी पुलिस ने घेरा
23 सितंबर 1998 को STF प्रभारी अरुण कुमार को सूचना मिली कि श्रीप्रकाश गाजियाबाद आ रहा है। गाजियाबाद में श्रीप्रकाश की प्रेमिका रहती थी, जिससे वो फोन पर बातें करता था। फोन के जरिए ही पुलिस को उसके इस अफेयर के बारे में पता चला।
23 सितंबर, 1998 को प्रेमिका से मिलने श्रीप्रकाश आया तो STF की टीम पहले से उसको घेरने के लिए दांव लगाकर बैठी थी। इंदिरापुरम इलाके में श्रीप्रकाश की कार घुसी तो एसटीएफ ने उसे घेर लिया। देखते ही देखते दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं।
श्रीप्रकाश शुक्ला को इस मुठभेड़ में गोली लगी और वो मारा गया। श्रीप्रकाश की मौत से उस वक्त की पुलिस और सरकार ने राहत की सांस ली। मौत के वक्त श्रीप्रकाश सिर्फ 25-26 साल का था। यूपी के गैंगेस्टर्स में शायद वो अकेला ऐसा नाम है, जिसने इतनी कम उम्र और कम वक्त में इस तरह की दहशत फैलाई हो। उसकी मौत के 25 साल बाद भी पूर्वांचल में उसके नाम पर तरह-तरह की कहानियां चलती हैं।

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