उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ हिंदुत्व और सामाजिक समरसता के नाम पर हमेशा ही मुखर रही है।
राम मंदिर आंदोलन का सफल होना गोरक्षपीठ की अगुवाई के बिना संभव नहीं था। महंत दिग्विजयनाथ द्वारा किए गए नेतृत्व से रामलला का प्रकटीकरण हुआ। 1984 में जब कांग्रेस सरकार के भय से कोई संत राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने को तैयार नहीं था तब महंत अवेद्यनाथ ने यह कहकर मंदिर आंदोलन की अगुवाई की कि उन्हें गोरखनाथ मंदिर की चिंता नहीं है बल्कि रामलला की चिंता है, राम मंदिर बनना ही चाहिए। महंत अवैद्यनाथ नेतृत्व स्वीकार नहीं करते तो मंदिर आंदोलन चल नहीं पाता।
डॉ. वेदांती ने सीएम योगी के नेतृत्व की सराहना
डॉ. वेदांती ने कहा कि 1973 में यदि महंत दिग्विजयनाथ जीवित होते तो बांग्लादेश एक अलग देश नहीं बल्कि भारत का एक राज्य होता। समाज में छुआछूत दूर करने के लिए दिग्विजयनाथ जी और महंत अवैद्यनाथ जी ने जितना काम किया, उतना किसी ने भी नहीं किया। वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर और
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि आज किसी भी अन्य प्रांत में साम्प्रदायिक हिंसा होती है तो वहां का हिंदू चिल्ला कर कहता है कि उसे योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व चाहिए। बांग्लादेश के हिंदू भी आज अपने संरक्षण के लिए योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व चाहते हैं।
महंत अवैद्यनाथ ने धर्म और राष्ट्र की रक्षा करना सिखाया: डॉ. रामकमल दास वेदांती
श्रद्धांजलि सभा में जगद्गुरु अनंतानंद द्वाराचार्य काशीपीठाधीश्वर स्वामी डॉ. रामकमल दास वेदांती ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने स्वाभिमानपूर्वक धर्म और राष्ट्र की रक्षा करना सिखाया। संत की भूमिका सिर्फ कुटिया में चिंतन करने तक सीमित नहीं है और यही काम गोरक्षपीठ के महंतों ने किया। गुजरात के जूनागढ़ स्थित गोरखनाथ आश्रम के महंत शेरनाथ ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवैद्यनाथ ने अपना जीवन समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया। शिक्षा, स्वास्थ्य समेत समाज के विकास में उनका अभूतपूर्व योगदान है।
राष्ट्र केंद्रित राजनीति के अग्रणी योद्धा थे महंत दिग्विजयनाथ
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ का व्यक्तित्व करिश्माई और असाधारण था। वह राष्ट्र केंद्रित राजनीति के अग्रणी योद्धा थे। उनके द्वारा जलाई गई शिक्षा की अलख के प्रतिबिंब महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के बारे में बताया जाता है कि वर्तमान में इसके तहत 52 संस्थाएं हैं। वास्तव में शिक्षा परिषद की 52 नहीं, 53 संस्थाएं हैं क्योंकि दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय भी इसी परिषद का अंग है।
उन्होंने कहा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना का सपना तब साकार हुआ जब महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संस्थापक महंत दिग्विजयनाथ जी ने इस परिषद की दो संस्थाएं गोरखपुर विश्वविद्यालय के नाम कर दीं। गोरखपुर विश्वविद्यालय उनका हमेशा ऋणी रहेगा। कुलपति ने ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज को भी भावभीनी श्रद्धांजलि दी।