मुख्यमंत्री ने अष्ठांगिक योग के सूत्रों को शिक्षा संस्थाओं से जोड़ते हुए कहा कि यम और नियम हमारे शिक्षा का पहला कार्य है। संस्थाध्यक्ष एवं शिक्षक स्वयं की आतंरिक एवं वाह्य शुद्धता के साथ संस्था के परिसर की वाह्य और आतंरिक शुद्धि की प्रेरणा योग के यम-नियम से प्राप्त कर सकता है और बिना आन्तरिक एवं वाह्य शुद्धि के कोई महत्वपूर्ण कार्य नही हो सकता है। शिक्षण संस्थाओं को अपनी कक्षाओं को उपासना गृह के रूप में विकसित करना होगा। इसी प्रकार आसन एवं समाधि की युगपरक शैक्षिक संस्थाओं के संदर्भ में व्याख्या करते हुए कहा कि स्थिर एवं सुखपूर्वक कार्य करते हुए हम ध्यान को लक्ष्य के प्रति एकाकार कर सिद्धि प्राप्त कर सकते है। अहर्निश प्रयास एवं अभ्यास के द्वारा हम कठिन से कठिन कार्य को आसान बना सकते है।
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समारोह में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के अध्यक्ष एवं पूर्व कुलपति प्रो. उदय प्रताप सिंह ने सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। प्रस्तावना महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के वरिष्ठ सदस्य एवं अधिवक्ता प्रमथनाथ मिश्र ने प्रस्तुत किया। श्रीगोरक्षाष्टक पाठ संस्कृत विद्यालय के अनुराग मिश्र एवं विकास मिश्र, एकल गीत ज्योति सिंह राजपूत तथा सरस्वती वन्दना एवं वन्देमातरम् गुरू श्री गोरक्षनाथ कालेज आफ नर्सिंग की छात्राओं ने प्रस्तुत किया। संचालन डाॅ. श्रीभगवान सिंह ने किया।