मान्यता को लेकर विश्वास मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में यहां बहुत घना जंगल था, जिसमें एक नाला बहता था। तुर्रा नाले पर लकड़ी का एक पुल होता था। कहा जाता है कि एक दिन वहां एक नाच मंडली आकर नाले के पूरब तरफ रुकी। बारात के लोगों को वहां सफेद वस्त्रों में एक बूढ़ी महिला बैठी थी। बूढ़ी महिला ने नाच मंडली से नाच दिखाने को कहा जिसपर नाच मंडली ने बूढ़ी महिला का मजाक उड़ाया। लेकिन मंडली में शामिल जोकर ने बांसुरी बजाकर पांच बार घूमकर महिला को नाच दिखा दिया। उस बूढ़ी महिला ने प्रसन्न होकर जोकर को आगाह किया कि वापसी में तुम सबके साथ पुल पार मत करना।
नाले के दोनों ओर है मंदिर बूढ़ी महिला की कही गई बातों का पालन करते हुए जोकर ने तीसरे दिन लौटते समय पुल पार नहीं किया। दरअसल, बारात जब पुल पर आई तो पुल टूट गया और पुरी बारात नाले में डूब गई। सिर्फ वह जोकर ही बचा रह गया जो बारात के साथ आगे नहीं बढ़ा। घटना से पहले बूढ़ी महिला पुल के पश्चिम की ओर बैठी मिली लेकिन घटना के बाद वह अदृश्य हो गई। तभी से नाले के दोनों तरफ का स्थान बुढ़िया माई के नाम से जाना जाता है। नाले के दोनों ओर प्राचीन और नवीन मंदिर है। इन दोनों मंदिरों के बीच के नाले को नाव से पार किया जाता है।
मंदिर को लेकर यह भी है मान्यता गोरखपुर शहर से 15 किमी पूर्व में कुसम्ही जंगल में स्थापित देवी माता का मंदिर एक चमत्कारी वृद्ध महिला के सम्मान में बनाया गया है। मंदिर को लेकर दूसरी मान्यता यह भी है कि पहले यहां थारू जाति के लोग निवास करते रहे हैं। वे जंगल में सात पिंडी बनाकर वनदेवी के रूप में पूजा करते थे। थारुओं को अक्सर इस पिंडी के आसपास सफेद वेश में एक वृद्ध दिखाई दिया करती रही है, जो कि कुछ ही पल में वह आंखों से ओझल भी हो जाती थी। कहा जाता है कि सफेद लिबास में दिखने वाली महिला जिससे नाराज हो जाती थी, उसका सर्वनाश होना तो तय रहता और जिससे प्रसन्न हो जाए, उसकी हर मनोकामना पूरी होती थी।