देश में आज 48 वर्ष पहले 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल लागू कर दिया गया। 26 जून की सुबह जब भारत की करीब 65 करोड़ आबादी को पता चला कि देश में आपातकाल लागू कर दिया गया है। इसकी जानकारी होते ही जनता हैरान हो गई। यह राष्ट्रपति शासन 21 महीने तक लागू रहा। इस दौरान करीब एक लाख 11 हजार सरकार विरोधियों को जेल भेज दिया गया। देश में पहली बार इमरजेंसी लागू करने वाले भारत के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की शुरुआती शिक्षा गोंडा के राजकीय हाईस्कूल में हुई थी। वह वर्ष 1918 में कक्षा आठ की परीक्षा में फेल हो गए थे। इस स्कूल के बारे में आज भी कहावत प्रचलित है कि यहां का फेल होने वाला छात्र भी देश का राष्ट्रपति बन गया।
गोंडा में प्रारंभिक शिक्षा राजनीति में बुलंदियां हासिल करने वाले फखरुद्दीन कक्षा 8 में हो गए थे फेल देश के पांचवें राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की प्रारंभिक शिक्षा की नींव गोंडा में ही पड़ी थी। यही वजह है कि इनकी जयंती पर आज भी इन्हें श्रद्धा सुमन के साथ याद किया जाता है। फखरुद्दीन अली अहमद राजकीय इंटर कॉलेज के पूर्व प्राचार्य अरुण तिवारी बताते हैं कि उनकी जयंती पर प्रतिवर्ष कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।फखरुद्दीन अली अहमद भारत के एक ऐसे सफल राजनेता भी थे। जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की स्थाई छाप छोड़ी। यद्यपि कि यहां के राजकीय हाईस्कूल में वह वर्ष 1918 में कक्षा आठ की परीक्षा में फेल हो गए थे। लेकिन गोंडा वासियों को इस बात का गर्व है कि शहर स्थित राजकीय कालेज में शिक्षा ग्रहण कर या तक में बुलंदियों को हासिल कर देश का नाम रोशन किया।
फेल होने पर लगा झटका फिर पढ़ाई के प्रति हो गए गंभीर देश के पांचवें राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद का जन्म 27 मई 1905 को पुरानी दिल्ली के काजी इलाके में हुआ था। इनके पिता ले. कर्नल जुल्नार अली अहमद गोंडा में सिविल सर्जन के पद पर तैनात थे।फखरुद्दीन अली अहमद की प्रारंभिक शिक्षा गोंडा जिले के राजकीय हाई स्कूल (अब फखरुद्दीन अली अहमद राजकीय इण्टर कालेज) में हुई थी। वर्ष 1915 में उनका दाखिला कक्षा पांच में हुआ था। लेकिन वे 1918 में कक्षा आठ की परीक्षा में फेल हो गए थे। कालेज के प्रधानाचार्य अरुण कुमार तिवारी बताते हैं कि वर्ष 1848 में स्थापित विद्यालय में उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार वर्ष 1916 में कक्षा छह, वर्ष 1917 में कक्षा सात की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह 1918 में कक्षा आठ की परीक्षा में फेल हो गए थे। साल 1974 में जब वह देश के राष्ट्रपति बने तो इस विद्यालय का नाम बदलकर फखरुद्दीन अली अहमद राजकीय इण्टर कालेज कर दिया गया।
कहा जाता है कि पढ़ाई के प्रति लापरवाह रहे फखरुद्दीन अली अहमद को फेल होने पर करारा झटका लगा। और तभी से वह पढ़ाई के प्रति गंभीर हो गए। दिल्ली में गवर्नमेंट हाई स्कूल से मैट्रिक की शिक्षा पूरी करने के बाद वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए 1923 में इंग्लैंड चले गए। जहां उन्होंने सेंट कैथरीन कालेज कैम्ब्रिज से उच्च शिक्षा प्राप्त की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब वे लंदन से लौटे तो वर्ष 1928 में लाहौर के (अब पाकिस्तान में) हाईकोर्ट में वकालत करने लगे।
जानिए राष्ट्रपति शासन के कारण वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी अपने मुख्य प्रतिद्वंदी सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण को पराजित किया था। चुनाव परिणाम आने के 4 साल बाद राजनारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दे दी। उनका आरोप था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया है। तथा चुनावी खर्च की सीमा से अधिक खर्च किया है मतदाताओं को प्रलोभन दिया है। उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने आरोपों को सही ठहराया। इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनावी कदाचार का दोषी करार देते हुए चुनाव रद्द कर दिया था। 12 जून 1975 को अपने ऐतिहासिक निर्णय में श्रीमती गांधी की जीत को अवैध करार दिया और उन्हें 06 वर्ष के लिये चुने हुए पद पर आसीन होने से रोक लगा दी। इस निर्णय से भारत में एक राजनीतिक संकट खड़ा हो गया और इन्दिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी जो 1975 से 1977 तक रहा। इस फैसले के खिलाफ इंदिरा गांधी सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा लेकिन इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दे दी। इसके बाद आंदोलन का दौर शुरू हो गया।
जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के इस्तीफा देने तक रोज प्रदर्शन करने का किया ऐलान सुप्रीम कोर्ट के पद पर बने रहने के आदेश के बाद 25 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के इस्तीफा देने तक देश में रोज प्रदर्शन का आह्वान किया। उसी दिन आधी रात में अध्यादेश पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद 26 जून को आपातकाल लागू कर दिया गया। आपातकाल को मंजूरी देने के बाद फखरुद्दीन विपक्ष के निशाने पर आ गए थे।डा. फखरुद्दीन अली अहमद भारत के 5वें राष्ट्रपति के रूप में अपने 05 वर्षों का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के दौरे से लौटने के बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 11 फरवरी 1977 को 71 वर्ष की अवस्था में उन्होंने राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली में अंतिम सांस ली।
पं. नेहरु ने बनाया कांग्रेस का सदस्य दिल्ली के सेंट कैथरीन कालेज में पढ़ाई के दौरान 1925 में उनकी मुलाकात पं. जवाहर लाल नेहरू से हुई। नेहरू के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने 1930 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सदस्य बनकर आजादी के आंदोलन में भागीदारी की। कांग्रेस की सदस्यता हासिल करने के चंद वर्षाें के भीतर वे असम कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य बने। फिर 1935 में असम विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए और 1938 में गोपीनाथ की सरकार में राजस्व तथा श्रम मंत्रालय संभाला। इसी दौरान उन्होंने चाय-बगानों की जमीन पर टैक्स आयद किया, जिसकी सराहना की जाती है। लेकिन इसके विरोध में उस वक्त हड़ताल भी हो गई थी।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान उनकी गिरफ्तारी हुई और साढ़े तीन साल तक जेल में रहे। जेल से रिहाई के बाद वे अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य बनाए गए। असम के एडवोकेट जनरल भी नियुक्त हुए। पं. जवाहर लाल नेहरु ने ही उन्हें कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में नामित किया।
आपातकाल के जनक के रूप में याद किए जाते पूर्व राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद 17 अगस्त 1974 को राष्ट्रपति पद का चुनाव हुआ तो नतीजा सबको पता था। फखरुद्दीन अली अहमद के मुकाबले उनके खिलाफ आठ विपक्षी दलों ने अपना साझे का उम्मीदवार गोवा के आजादी के संग्राम में शामिल रहे समाजवादी नेता त्रिदिब चौधरी के रूप में खड़ा किया। 20 अगस्त को मतों की गिनती हुई तो त्रिदिब चौधरी को 01 लाख 89 हजार और फखरुद्दीन अली अहमद को 07 लाख 65 हजार वोट मिले थे। इंदिरा गांधी के कहने पर उन्होंने आपातकाल को मंजूरी दिया।