प्रदेश ही नहीं नेपाल से आते बड़ी संख्या में श्रद्धालु नवरात्र के महीने में यहां पर प्रदेश ही नहीं बल्कि पड़ोसी देश नेपाल से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित तरबगंज तहसील के उमरी बेगमगंज थाना सूकर क्षेत्र के मुकंदपुर में शक्तिपीठ बाराही देवी का मंदिर है। नवरात्रि के दिनों में यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं। लोगों का मानना है कि इस स्थान पर बाराही मां के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं।
मंदिर का नीर और वट वृक्ष का दूध लगाने से लौट आती आंखों की रोशनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्र माह में आंख से पीड़ित व्यक्तियों द्वारा यहां कल्पवास करने और मन्दिर का नीर एवं बट वृक्ष का दुग्ध आखों पर लगाने से आंखों की ज्योति पुनः वापस आ जाती है। मंदिर मे दर्शन के लिए आस-पास के जनपदों के अलावा दूसरे प्रदेश व नेपाल से भारी संख्या में लोग आते हैं। मां बाराही मंदिर को उत्तरी भवानी के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान विष्णु ने पाताल लोक जाने के लिए की थी शक्ति की उपासना वाराह पुराण के अनुसार, जब हिरण्य कश्यप के भाई हिरण्याक्ष का पूरे पृथ्वी पर आधिपत्य हो गया था। देवताओं, साधू-सन्तों और ऋषि मुनियों पर अत्याचार बढ़ गया था तो हिरण्याक्ष का वध करने के लिये भगवान विष्णु को वाराह का रूप धारण करना पड़ा था। भगवान विष्णु ने जब पाताल लोक पंहुचने के लिये शक्ति की आराधना की तो मुकुन्दपुर में सुखनोई नदी के तट पर मां भगवती बाराही देवी के रूप में प्रकट हुईं। इस मन्दिर में स्थित सुरंग से भगवान वाराह ने पाताल लोक जाकर हिरण्याक्ष का वध किया था। तभी से यह मन्दिर अस्तित्व में आया। इसे कुछ लोग बाराही देवी और कुछ लोग उत्तरी भवानी के नाम से जानने लगे। मंदिर के चारों तरफ फैली वट वृक्ष की शाखायें, इस मन्दिर के अति प्राचीन होने का प्रमाण है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसे प्रगट हुई मां बाराही देवी मां वाराही यहां पिंडी रूप में विराजमान हैं। एक अन्य कथा के अनुसार वाराह अवतार के समय जब भगवान श्री हरि ने हिरणाक्ष नाम के राक्षस का संहार किया। उसके बाद यहीं पर मां वाराही का ध्यान किया था। मां के इस मंदिर में वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना मां अवश्य पूरा करती हैं।