गोंडा

Brij Bhushan Sharan Singh: सामान्य किसान के घर जन्मे बृजभूषण शरण सिंह कैसे बने करोड़पति, पढ़िए इनकी पूरी कुंडली

Brij Bhushan Sharan Singh: उत्तर प्रदेश के गोण्डा जिले के बिश्‍नौरपुर में बृजभूषण शरण सिंह का जन्म 8 जनवरी 1957 को हुआ था। इनके पिता का नाम जगदम्बा शरण सिंह और माता का नाम प्यारी देवी सिंह है।

गोंडाJun 03, 2023 / 07:42 pm

Vishnu Bajpai

Brij Bhushan Sharan Singh: उत्तर प्रदेश के गोण्डा जिले के बिश्‍नौरपुर में बृजभूषण शरण सिंह का जन्म 8 जनवरी 1957 को हुआ था। इनके पिता का नाम जगदम्बा शरण सिंह और माता का नाम प्यारी देवी सिंह है। इनका परिवार बेहद साधारण था और पिता किसानी करते थे। इन्होंने छात्रसंघ से राजनीति की शुरुआत की थी। छात्र जीवन से ही राजनीतिक तौर पर बेहद सक्रिय रहे बृज भूषण शरण सिंह का युवा जीवन अयोध्या के अखाड़ों में गुज़रा। पहलवान के तौर पर वे खुद को ‘शक्तिशाली’ कहते हैं। कॉलेज के दौर में ही वे छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए और यहां से शुरू हुआ उनका सक्रिय राजनीतिक जीवन। इसी के बाद 1991 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने जाने वाले बृज भूषण सिंह, 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 में कुल मिलाकर 6 बार लोकसभा के लिए चुने गए।
1999 से लगातार सांसद रहने वाले भाजपा के दिग्गज नेता
भाजपा के बृजभूषण शरण सिंह उत्तर प्रदेश के कैसरगंज निर्वाचन क्षेत्र के मौजूदा सांसद हैं। वे वर्तमान में इस क्षेत्र में अपने दूसरे कार्यकाल के लिए सेवारत हैं। 2009 में बसपा के सुरेन्द्र नाथ अवस्थी को 72,199 मतों के अंतर से हराकर वे कैसरगंज निर्वाचन क्षेत्र से आम चुनावों में चुने गए। 2014 में उन्हें उसी निर्वाचन क्षेत्र से फिर से चुना गया। उन्होंने पहली बार 1991 में चुनाव लड़ा, जहां उन्होंने गोंडा निर्वाचन क्षेत्र से अपना पहला चुनाव जीता।
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हालांकि, वे उसी निर्वाचन क्षेत्र में सपा के कीर्ति वर्धन सिंह से 12 वीं लोकसभा चुनाव हार गए। हार से प्रभावित होकर वे 1999 का चुनाव लड़े और अपने पूर्व प्रतिद्वंद्वी कीर्ति वर्धन सिंह को हराकर जीत हासिल की। उस जीत के बाद, उन्होंने 2004, 2009 और 2014 में लगातार तीन चुनाव जीते और भाजपा के सेसपूल में मजबूत दावेदार साबित हुए।
यूपी की कैसरगंज लोकसभा सीट से हैं सांसद
बृजभूषण शरण सिंह उत्तर प्रदेश के गोंडा में रहने वाले दबंग नेता हैं और पूर्वांचल की राजनीति में उनकी अच्छी पकड़ है। यूपी की कैसरगंज लोकसभा से वर्तमान में वह सांसद हैं और 6 बार लोकसभा सांसद निर्वाचित हो चुके हैं। बृजभूषण की छवि एक कट्टर हिंदूवादी के नेता के तौर पर मानी जाती है। बृजभूषण को किशोरावस्था से ही कुश्ती करने का शौक था और स्थानीय स्तर पर कुश्ती लड़ने जाते थे। आगे चलकर बृजभूषण ने छात्र राजनीति से अपने सियासी करियर की शुरूआत की। 1991 में राम मंदिर के आंदोलन के दौरान उन्हें भाजपा की ओर लोकसभा का टिकट मिला और उन्होंने जीत दर्ज की।
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राम मंदिर आंदोलन में थे अभियुक्त
राम मंदिर आंदोलन में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह समेत 40 लोगों को अभियु्क्त बनाया गया। जिसमें बृजभूषण शरण सिंह का नाम भी शामिल था। इस आंदोलन के बाद बृजभूषण की सियासी ताकत में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई और वह तेजतर्रार नेता बनकर उभरे। इसके बाद उन्होंने 2004 में लोकसभा चुनाव जीता।
2009 में थामा सपा का दामन
2009 में बृजभूषण ने भाजपा छोड़ सपा का दामन थाम लिया और एक बार फिर अपनी सीट से जीत दर्ज की। हालांकि 2014 में वो एक फिर भाजपा में शामिल हो गए और कैसरगंज से सांसद बने। इसके बाद वह लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं। बृजभूषण शरण सिंह 2011 कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष हैं, 2019 में वह तीसरी बार अध्यक्ष चुने गए हैं। हालांकि कुछ ही दिनों में इनका इस पद से कार्यकाल समाप्त हो रहा है।
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महिला पहलवानों का आरोप
विनेश ने कहा, ‘जंतर मंतर पर बैठने से तीन-चार महीने पहले, हम एक अधिकारी से मिले थे, हमने उन्हें सब कुछ बताया था कि कैसे महिला एथलीटों का यौन उत्पीड़न और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, जब कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो हम धरने पर बैठ गए।’
WFI के खिलाफ आर-पार की लड़ाई
बजरंग पूनिया ने कहा “डब्ल्यूएफआइ मनमाने ढंग से चलाया जा रहा है और जब तक डब्ल्यूएफआइ अध्यक्ष को हटाया नहीं जाता तब तक यहां बैठे खिलाड़ी किसी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेंगे हमारी लड़ाई सरकार या भारतीय खेल प्राधिकरण से नहीं है। हम डब्ल्यूएफआइ के विरुद्ध आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे। यह भारतीय कुश्ती को बचाने की लड़ाई है।”
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बृजभूषण का इस्तीफा से इनकार
इस बीच, बृजभूषण ने कुश्ती संघ से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है, यह कहते हुए कि इसका मतलब यह होगा कि उन्होंने आरोपों को स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा, ‘अगर मैं इस्तीफा देता हूं तो इसका मतलब है कि मैंने उनके आरोप को स्वीकार कर लिया है, मेरा कार्यकाल खत्म होने वाला है। जब तक नई पार्टी नहीं बनती और सरकार आईओए कमेटी का गठन नहीं करती, तब तक उस कमेटी के तहत चुनाव होते रहेंगे और उसके बाद मेरा कार्यकाल खत्म हो जाएगा।’

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