गाजीपुर के धामूपुर के रहने वाले वीर अब्दुल हमीद 1 जुलाई, 1933 को पैदा हुए थे। उनके पिता मोहम्मद उस्मान सिलाई का काम करते थे, लेकिन हमीद का मन इस काम में नहीं लगता था। उनकी रुचि लाठी चलाना, कुश्ती का अभ्यास करना, नदी पार करना, गुलेल से निशाना लगाना अच्छा लगता था। 20 साल की उम्र में उन्होंने वाराणसी में आर्मी जॉइन की। उन्हें ट्रेनिंग के बाद 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में पोस्टिंग मिली। 1962 में पहली बार उन्होंने चीन के साथ लड़ाई लड़ी। वीर अब्दुल हमीद की पत्नी रसूलन बीबी जिनका हाल ही में निधन हुआ है उन्होंने बताया था कि सेना में भर्ती के बाद पहला युद्ध उन्होंने चीन से लड़ा और जंगल में भटक कर कई दिनों तक भूखे रहकर किसी तरह घर आये थे, वहां जंगल में उन्हें पत्ता तक खाना पड़ा था।
1965 में पाकिस्तान युद्ध से पहले 10 दिन के लिए छुट्टी पर आए थे। रेडियो से सूचना मिली तो हड़बड़ी में जंग के मैदान में जाने को बेताब हो गये। घर वाले मना करते रह गए, मगर उन्होंने किसी की नहीं सुनी। कहा जाता है कि जाते वक्त कई अपशगुन हुए उनकी बेडिंग खुल गयी, साइकिल पंचर हो गयी, मगर वह भोर में वो निकल ही गये और जांबाजी से लड़ाई लड़ी। युद्ध में वीर अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारण जिले के खेमकरण सेक्टर में पोस्टेड थे। पाकिस्तान टैंकों ने गांव पर हमला कर दिया।
जानकारी के मुताबिक अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर 1965 को सुबह 9 बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी। वह जीप में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठे थे। उन्हें दूर से टैंकर आने की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद उन्हें टैंक दिख भी गए। वह टैंकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार करने लगे और गन्नों की आड़ का फायदा उठाते हुए फायर कर दिया और एक ही बार में 4 टैंक उड़ा दिए थे। 10 सितंबर को उन्होंने 3 और टैंक को तबाह कर दिया । इसी बीच पाकिस्तानी सैनिक की नजर उन पर पड़ गई और दोनों तरफ से हमले हुए और इसी हमले में 10 सितंबर 1965 को वह वीरगति को प्राप्त हो गये। वीर अब्दुल हमीद को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।