दरअसल, मुख्तार ही नहीं पूरी यूपी में गैंगवार शुरू हो रही थी… पूर्वांचल में डेवलपमेंट के लिए इनवेस्टमेंट आ रहा था। इसमें ठेकेदारी पाकर हर कोई पैसा कमाना चाह रहा था। ठेकेदारी के चक्कर में दुश्मनी बढ़ी और फिर बात मर्डर तक पहुंच गई। शुरुआती एक-दो मर्डर ने बाद में गैंगवार का रूप ले लिया।
मामला दर्ज होता है फिर इन्वेस्टिगेशन और फिर लंबी सुनवाई। 26 साल तक चले इस लंबी सुनवाई में 12 दिसंबर 2022 को अंतिम गवाही जिरह और बहस हुई इसमें कुल 11 गवाहों ने गवाही दी जिसमें खुद अजय राय भी शामिल रहे। फैसला सुनाने की तारीख 15 दिसंबर को तय की गई थी।
15 दिसंबर को MP-MLA कोर्ट ने बाहुबली मुख्तार को दोषी करार देते हुए 10 साल की सजा का ऐलान कर दिया। साथ में 5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया। मुख्तार के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट में कुल 5 मुकदमे दर्ज थे, जिसमें से गाजीपुर, वाराणसी में 2-2 और चंदौली में एक मुकदमा दर्ज था।
मुख्तार के नाना की कहानी अलग है… इंडिया और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से मोहम्मद अली जिन्ना ने ब्रिगेडियर उस्मान को पाकिस्तान सेना के आर्मी चीफ बनने का पर्सनल ऑफर दिया था। उस वक्त वो इंडियन आर्मी में मेजर के पद पर रहते हुए देश की सेवा कर रहे थे।
उन्होंने छह कद ऊंचे पोस्ट को यह कहते हुए साफ-साफ मना कर दिया कि, “लड़ा है इस देश के लिए मरेंगे भी इस देश के लिए।” ये ब्रिगेडियर मुख्तार अंसारी के नाना थे। 36 साल की उम्र में शहीद होने वाले बने पहले ब्रिगेडियर भी बने, महावीर चक्र भी मिला है…
मुख्तार के नाना अकेले ऐसे भारतीय सैनिक थे, जिनका सिर लाने पर पाकिस्तान ने 50 हजार रुपये का इनाम रखा था। 1947 में यह रकम बहुत बड़ी होती थी। 6 फरवरी 1948 को पाकिस्तान ने नौशेरा पर सेक्टर पर बड़ा हमला कर दिया।
मुख्तार के नाना अकेले ऐसे भारतीय सैनिक थे, जिनका सिर लाने पर पाकिस्तान ने 50 हजार रुपये का इनाम रखा था। 1947 में यह रकम बहुत बड़ी होती थी। 6 फरवरी 1948 को पाकिस्तान ने नौशेरा पर सेक्टर पर बड़ा हमला कर दिया।
50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर उस्मान ने दुश्मनों का नौशेरा पर कब्जा नहीं होने दिया। शहादत के बाद उनको जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में दफनाया गया। मरणोपरांत उनको देश के दूसरे बड़े सैन्य सम्मान महावीर चक्र से नवाजा गया। सेना ने उनको “नौशेरा का शेर” नाम से नवाजा।
मुख्तार के पिता नेता बने, एक बार चुनाव में उतरे तो बाकी कैंडिडेट्स ने पर्चा वापस ले लिया मुख्तार अंसारी के पिता नेता बने। वह एक बार नगर पालिका के चुनाव में उतरे तो बाकी लोगों ने पर्चा वापस ले लिया। मुख्तार के खानदान में चाचा लगने वाले हामिद अंसारी दो बार देश के उपराष्ट्रपति रहे।
इतने समृद्ध परिवार से होने के बावजूद मुख्तार ने परिवार के नक्शेकदम पर चलने के बजाय अपराध की दुनिया को चुना। ऐसा क्यों, आइए बताते हैं… गैंगवार के देवता बने मुख्तार और बृजेश, खून के छींटों से लिखी पूर्वांचल की क्राइम स्टोरी
अब बात फिर उसी 1990 के दशक की। जब मुख्तार जवान हो रहे थे। टशन और और ठेके पाने की होड़ में पूर्वांचल में गैंग बन गए, पहला मकनु सिंह का और दूसरा साहिब सिंह का गैंग। मुख्तार अपने कॉलेज के दोस्त साधू सिंह के साथ मकनु सिंह गैंग में थे।
एक बार गाजीपुर जिले के सैदपुर में दोनों गैंग के बीच ठेके को लेकर विवाद हुआ तो रास्ते एकदम अलग हो गए। साहिब सिंह गैंग के सबसे खतरनाक चेहरे का नाम था बृजेश सिंह। उस वक्त तक बृजेश और मुख्तार में किसी तरह का कोई झगड़ा नहीं था। लेकिन साल 1990 आते-आते ये दोनो एक दूसरे के खून के प्यास हो गए। जो आज भी जारी है।
मुख्तार ने बीजेपी के विजय प्रताप सिंह को 26 हजार वोट से हरा दिया। इस जीत के बाद मुख्तार की ताकत और संपत्ति में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। सामाजिक कार्यों, जैसे गरीब के बेटी की शादी हो या स्कूल की फीस, लोग कहते हैं कि मदद मांगने वाले को उसने कभी मना नहीं किया इसीलिए मुख्तार को लोगों ने रॉबिनहुड नाम से भी बुलाया। दरअसल, रॉबिनहुड यानी अमीरों को लूटकर गरीबों की मदद करने वाला।
मुख्तार की कहानी में पूर्वांचल के बादशाह बनने का सपना लेकर आए कृष्णानंद राय की एंट्री गाजीपुर जिले की एक सीट है मोहम्मदाबाद। इस सीट पर 1985 से अंसारी परिवार का ही कब्जा था। 2002 में अंसारी परिवार के विजय रथ को फुल स्टॉप लगाते हुए, भाजपा नेता कृष्णानंद राय विधायक बन गए। कृष्णानंद ने अफजाल अंसारी को 7,772 वोटों से हरा दिया।
इसी के सालभर पहले की एक घटना भी है… 2001 में मुख्तार के काफिले पर हमला हुआ था। गाजीपुर की उसरी-चट्टी के पास। इस हमले में मुख्तार अंसारी बाल-बाल बच गए। कहते हैं कि इसमें भी वही गैंग थी, जिसने उन्हें चुनाव हराया था।
क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन करने गए कृष्णानंद राय को गोलियों से भून दिया 29 नवंबर 2005 को विधायक कृष्णानंद राय बुलेट प्रूफ गाड़ी के बजाय नॉर्मल गाड़ी से पड़ोसी गांव में क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन करने गए थे। कार्यक्रम से निकले ही थे कि भांवरकोल की बसनिया पुलिया के पास सामने से आई एक सिल्वर ग्रे कलर की SUV सामने खड़ी हो गई।
8 लोग एसयूपी से उतरे और विधायक कृष्णानंद राय की गाड़ी पर AK-47 से फायर कर दिया। शरीर के साथ पूरी गाड़ी छलनी हो गई। घटना स्थल पर कम से कम 500 राउंड गोलियां चली। सात लोग मारे गए। पोस्टमॉर्टम हुआ तो इन सातों शव से 67 गोलियां निकाली गई।
पॉलिटिकल पार्टियां जब भी पूर्वांचल में अपना ग्राफ बढ़ाने के लिए बढ़ी उन्होंने मुख्तार और परिवार के कंधे को चुना। चाहे वो बसपा हो या सपा। मुख्तार अंसारी मऊ सदर सीट से 1996 – 2022 तक लगातार 5 बार विधायक रहे। 2007, 2012 और 2017 यानी लगातार तीन बार तो जेल में रहते हुए चुनाव जीता।
2022 में हुए चुनाव में मऊ सदर सीट से मुख्तार की जगह उनका बेटा अब्बास अंसारी चुनाव लड़े और जीत हासिल की। मुख्तार को यूपी लाने के लिए लेना पड़ा था सुप्रीम कोर्ट का सहारा
मुख्तार अंसारी पर मोहाली के बिल्डर से 10 करोड़ की रंगदारी मांगने का आरोप था। इसी मामले में पंजाब पुलिस प्रोडक्शन वारंट पर मोहाली लेकर आई थी। 24 जनवरी 2019 को कोर्ट में पेश कर उसे रोपड़ जेल में भेज दिया गया।
इसी मामले में सुनवाई के चलते मुख्तार अंसारी को यूपी की बांदा जेल से पंजाब की रोपड़ जेल भेज दिया गया था। तब मुख्तार बाहर बैठकर ही पूर्वांचल चला रहे थे। लेकिन योगी ने पाशा पलट दिया…
यूपी में बीजेपी की सरकार बनी। सरकार चाहती थी कि मुख्तार यूपी में ही रहे। लेकिन उन्हें पंजाब की जेल से यूपी की जेल लाने के का मामला 2 राज्यों की सरकारों के बीच फंस गया।
मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा, सुप्रीम कोर्ट ने 7 अप्रैल 2021 को आदेश दिया कि मुख्तार को यूपी शिफ्ट किया जाए तभी से मुख्तार यूपी के बांदा जेल में बंद हैं। शनिवार यानी 17 दिसंबर को गाजीपुर पुलिस ने मुख्तार के बड़े भाई अफजाल के लखनऊ के हजरतगंज और डॉलीबाग में मौजूद दो फ्लैट कुर्की की। इस घटना से मुख्तार और उनके परिवार की मुश्किलें और बढ़ गईं है।