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गाज़ियाबाद

43 साल बाद गाजियाबाद को यह तमगा क्यों…, देखें Video

Highlights – गाजियाबाद के स्थापना दिवस पर लोगों को घरों में बंद रहने को कहा जा रहा – देश में सबसे प्रदूषित शहर का तमगा किसकी लापरवाही से मिला इस शहर को – क्या 1952 में हुए लंदन जैसे हालात का इंतजार कर रहे हैं यहां के अधिकारी

गाज़ियाबादNov 14, 2019 / 03:09 pm

Ashutosh Pathak

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आशुतोष पाठक/गाजियाबाद. 14 नवंबर 2019 को गाजियाबाद बतौर जिला 43 साल का हो गया। जी हां, 14 नवंबर 1976 से पहले गाजियाबाद मेरठ जिले की एक तहसील हुआ करता था। तब शहर की आबादी कम थी। यहां चारों ओर खेत थेे। जंगल थे। हर तरफ हरियाली और शांति थी। प्रदूषण नहीं था। जैसा आज है। मगर प्रदूषण के मामले में तो गाजियाबाद ने अब काफी तरक्की कर ली है। सबको पीछे छोड़ते हुए सिर्फ 43 साल पुराना यह जिला आज देश में सबसे प्रदूषित शहर का तमगा हासिल कर चुका है। यह तमगा गाजियाबाद और यहां रहने वालों के लिए न सिर्फ शर्मनाक धब्बा है बल्कि, तमाम मसलों पर एक चेतावनी भी है।
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हालांकि, इस शहर को यह पहचान दिलाई है यहां अंधाधुंध और बेपरवाही से किए गए विकास ने, जिसमें काफी हद तक हम सबकी लापरवाही और मनमानी शामिल है। गाजियाबाद जब जिला बना तब इतना छोटा हुआ करता था कि लोग साइकिल से पूरा शहर थोड़ी ही देर में नाप लेते थे, लेकिन आज बाइक या कार से आप घूूमने निकलें तो शायद सुबह से रात हो जाए, मगर आप पूरा शहर नहीं घूम सकेंगे। इसकी दो वजह है। पहला, यह शहर अब काफी दूर तक फैल चुका है। दूसरा, बदहाल ट्रैफिक और अतिक्रमण की वजह से हर समय जाम से जूझता रहता है।
अगर पहली वजह पर गौर करें तो उत्तर प्रदेश में कानपुर के बाद यह दूसरा ऐसा शहर है, जहां सबसे अधिक उद्योग थे। जिला बनने के बाद यहां तेजी से उद्योग लगने लगे। कारण, यह दिल्ली के नजदीक था और माल ढुलाई के लिए रेलवे सबसे सुगम साधन के तौर पर हर जगह के लिए उपलब्ध था। उद्योग लगे तो बाहरी राज्यों से लोग यहां काम करने के लिए आने लगे और यहीं के होकर रह गए। शहर और यहां रहने वाले, दोनों ही तरक्की की नई इबारत लिख रहे थे, लेकिन किसे पता था कि यह तरक्की उनके लिए ही इस कदर घातक साबित होगी कि आज घर में कैद होना पड़ रहा है। दीपावली के बाद शहर में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया था, जिसकी वजह से स्कूल-कॉलेज बंद करने पड़े। यहां की एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई लेवल पांच सौ से ज्यादा पंहुच गया। यानी हर आदमी नहीं चाहते हुए भी रोज करीब 20 सिगरेट के बराबर धुंआ अपने शरीर में ले रहा है।
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पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर चिंता जताई। उन्होंने लोगों से इस मसले पर जागरुक और सतर्क रहने की अपील भी की। उन्होंने कहा कि साफ हवा हासिल करना न सिर्फ हमारी जिम्मेदारी है बल्कि, यह हमारा अधिकार भी है। उन्होंने लंदन में 1952 की उस घटना का भी जिक्र किया, जब प्रदूषण से वहां हजारों लोगों की जान चली गई। इसके बाद जनता ने पूरे शहर में जमकर विरोध-प्रदर्शन किया और तब वहां की सरकार ने, लोगों को साफ हवा मिले, इसके लिए कानून बनाया।
कमोबेश लंदन जैसी स्थिति गाजियाबाद में भी बन रही है। लोग बीमार हो रहे हैं, लेकिन स्थिति की गंभीरता को अब भी नहीं समझा जा रहा। क्या जिम्मेदार तंत्र लंदन की तरह ही यहां भी लोगों के मरने का इंतजार कर रहा है या फिर आक्रोशित जनता को सडक़ पर उतरने के लिए मजबूर किया जा रहा है। आखिर क्यों हम अब भी स्थिति की गंभीरता को नहीं समझ रहे। कब तक प्रदूषण की वजह से लोगों को घरों में बंद रहने को कहा जाएगा। गाजियाबाद सबसे प्रदूषित शहर है, उस पर लगा यह ठप्पा आखिकर कब और कैसे हटेगा, इस पर हम सबको अभी से पूरी गंभीरता से काम करना होगा।

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