और जिले की कानून व्यवस्था बेहतर हो जाएगी लोग कभी भी कहीं भी आ जा सकेंगे। लेकिन यह बिल्कुल ग़लत साबित हो गया है। कमिश्नरी होने के बाद जिले में अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है बदमाश आए दिन लूट और छिनेती जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।
जिले कमिश्नरी लागू होने से पहले अपराधियों की धरपकड़ के लिए अभियान चलाएं जा रहे थे जिले भर में एक के बाद एक बदमाशों के एनकाउंटर किए जा रहे हैं जिस कारण से अपराधियों में खोफ था।वहीं जब से जिले में कमिश्नरेट सिस्टम शुरू हुआ सबसे बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई बिल्कुल ही बंद होते नजर आ रही है जिसके कारण बदमाशों के हौसले लगातार बुलंद हो रहे हैं और अपराधी एक के बाद एक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।
अगर इसी तरह चलता रहा तो लोनी जैसे इलाके में तो यह अपराधी आमजन का रहना मुश्किल कर देंगे यह अधिकारियों को समझना पड़ेगा। अधिकारियों को यह आंकड़ा देख लेना चाहिए पिछले कुछ समय में अपराधियों के हौसले किस तरह बुलंद हुएं हैं किस तरह गिरोह सक्रिय हुए और लगातार घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। लोनी के रामपार्क एक्टेंशन कालोनी में कल हुई घटना के बाद बदमाशों ने गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम को खुली चुनौती दे दी है।
आखिर कैसे लगाम लगेगी अपराधियों पर
जिले में कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने के बाद लगा था कि अब पुलिसिंग में सुधार होगा जिले में पुलिस फोर्स बढ़ेगा लेकिन महीने बीत जाने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है जिले में कितनी पुलिस चौकियां तो ऐसी है जिन पर चौकी प्रभारी के साथ दो या तीन सिपाही ही तैनात हैं जोकि 24 घंटे अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं।
जिले में कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने के बाद लगा था कि अब पुलिसिंग में सुधार होगा जिले में पुलिस फोर्स बढ़ेगा लेकिन महीने बीत जाने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है जिले में कितनी पुलिस चौकियां तो ऐसी है जिन पर चौकी प्रभारी के साथ दो या तीन सिपाही ही तैनात हैं जोकि 24 घंटे अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं।
हर चौकी क्षेत्र में आबादी के हिसाब से भी देखा जाए तो पुलिसकर्मियों की संख्या बहुत कम है और ऐसे में अगर कोई घटना घटित हो जाएं तो अधिकारियों का ग़ुस्सा भी इन्हें झेलना पड़ता है। अभी जिले में दो पुलिसकर्मी निलंबित भी कर दिए गए थे। अधिकारियों को इन चीजों पर ध्यान देना चाहिए।
कुछ समय पहले तक जिले के उच्च अधिकारी पुलिस फोर्स के साथ सड़कों पर दिखाई देते थे पैदल गस्त की जाती थी। सड़कों पर पुलिस फोर्स के साथ अधिकारियों को देखकर ही आमजन के मन खुद को सुरक्षित महसूस किया जाता है और अपराधियों में भी इसका खौफ बना रहता है लेकिन यह सब लगभग खत्म हो रहा है।
अगर लोनी की बात करें तो पूर्व में डीसीपी ग्रामीण द्वारा हर दूसरे दिन किसी क्षेत्र में पैदल गस्त की जाती थी और अब तो खास मौकों पर ही डीसीपी लोनी में दिखाई दे रहे हैं। लोनी जैसे संवेदनशील इलाके में जहां पर स्पेशल एक डीसीपी की तैनाती होनी चाहिए वहां पर पुलिस फोर्स की भी भारी कमी है उच्च अधिकारियों को इस बारे में गहनता से विचार करना होगा और यहां अपराधियों की कमर तोड़ने के लिए अपने मातहतों के साथ समन्वय बनाकर कर कडे निर्णय लेने होंगे तभी व्यवस्था में बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे। बाकी तो सब चल ही रहा है।