chhat गाजियाबाद। chhath दीपावली के ठीक छह दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को chhath parv , chhath puja मनाया जाता है। छठ सूर्य उपासना का महान पर्व है क्योंकि संपूर्ण जगत में सूर्य को काल जई कहा गया है, सूर्य ही एक मात्र प्रत्यक्ष देवता है और वे समस्त जगत के नेत्र हैं। उपनिषदों में सूर्य को ब्रह्मा, विष्णु और महेश कहा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है उदयमान और अस्ताचलगामी सूर्य की आराधना करने से विद्वता एंव संपूर्ण सुख की प्राप्ती होती है और उपासक का सदैव मंगल होता है। इस व्रत में Chhath Mata की भी पूजा की जाती है। इस बार पहला अर्घ 13 नवंबर की शाम को दिया जाएगा और 14 नवंबर को सुबह उगते सूर्य देव को अर्घ।
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देश ही नहीं विदेश में भी छठ की महिमा- सूर्योपासना का यह छठ लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। लेकिन छठी मईया की महिमा अब देश के अन्य क्षेत्रों के अलावा विदेशों में भी इस त्योहार का विस्तार हो चुका है। जहां लोग धूम-धाम से आस्था का महापर्व मनाते हैं। छठ पर्व केवल एक दिन का त्योहार नहीं है बल्कि यह महापर्व कुल चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है।
देश ही नहीं विदेश में भी छठ की महिमा- सूर्योपासना का यह छठ लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। लेकिन छठी मईया की महिमा अब देश के अन्य क्षेत्रों के अलावा विदेशों में भी इस त्योहार का विस्तार हो चुका है। जहां लोग धूम-धाम से आस्था का महापर्व मनाते हैं। छठ पर्व केवल एक दिन का त्योहार नहीं है बल्कि यह महापर्व कुल चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है।
छठ मनाए जाने का इतिहास, कहानियां और कथा छठ पर्व कैसे शुरू हुआ, इस त्योहार को कब से मनाया जाता है, इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं। आज उनके बारे में जानेंगे। कहानियों और लोक कथाओं से पता चलता है की छठ पर्व हजारों सालों पहले से मनाया जा रहा है। पुराणों, शस्त्रों में वर्णित सूर्य की उपसना इसकी पुष्टि करते हैं।
एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। जब कुंती ने सूर्य की उपसना की थी और उन्हें पुत्र की प्राप्ती हुई थी और तब से कर्ण सूर्य की पूजा करते थे। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है।
इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।
पुराण में छठ पूजा के पीछे की राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया । मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
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