गाज़ियाबाद

दो बच्चों को गोद लेने के लिए 21 दंपति कतार में, जिले में शुरू हुई दत्तक ग्रहण इकाई

गाजियाबाद जिला प्रोबेशन अधिकारी विकास चंद्र का कहना है कि काफी टाइम से घरौंदा बालगृह के संचालक ओंकार सिंह लावारिस बच्चों की देखभाल का कार्य कर रहे हैं।

गाज़ियाबादNov 18, 2021 / 02:39 pm

Nitish Pandey

गाजियाबाद. उत्तर प्रदेश के मेरठ और सहारनपुर मंडल के लिए दत्तक ग्रहण इकाई गाजियाबाद में शुरू की गई है। यहां पर गोद देने के लिए दो बच्चे हैं, लेकिन बच्चों को गोद लेने के लिए 21 दंपती लाइन में हैं। उन्होंने बच्चा गोद लेने के लिए सेंट्रल एडाप्शन रिसोर्स अथॉरिटी के जरिए आवेदन किया है।
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शासन से मिली है दत्तक ग्रहण इकाई की अनुमति

इस संबंध में गाजियाबाद जिला प्रोबेशन अधिकारी विकास चंद्र का कहना है कि काफी टाइम से घरौंदा बालगृह के संचालक ओंकार सिंह लावारिस बच्चों की देखभाल का कार्य कर रहे हैं। विशेषीकृत दत्तक ग्रहण इकाई खोलने की अनुमति शासन से मिली है। फिलहाल ओंकार सिंह, इसे घरौंदा स्थित बालगृह से ही संचालित कर रहे हैं, लेकिन जल्द ही इसे किसी दूसरे जगह पर खोला जाएगा।
अब नहीं करनी पड़ेगी लंबी दूरी तय

उन्होंने आगे बातचीत में कहा कि पहले गाजियाबाद में विशेषीकृत दत्तक ग्रहण इकाई नहीं होने के कारण बच्चों को मथुरा और रामपुर या कि फिर किसी दूसरे जिले में भेजा जाता था। जहां कारा के जरिए आवेदन करने वाले दंपती को बच्चा गोद दिया जाता था। ऐसे में मेरठ और सहारनपुर मंडल के लोगों को बच्चा गोद लेने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी।
2007 से बच्चों की देखभाल कर रहे हैं ओंकार

बदा दे कि गाजियाबाद जिले के मोदीनगर निवासी ओंकार सिंह ने बताया कि वर्ष 2007 में भरतपुरिया शिक्षा समिति नाम से एक एनजीओ बनाया और वसुंधरा में लाल बहादुर शास्त्री बाल वाटिका स्कूल खोला। वर्तमान में यहां 150 बच्चे निशुल्क पढ़ रहे हैं। 2012 में वसुंधरा में लाल बहादुर शास्त्री सुदर्शनम बालगृह खोला, जहां 10 से 18 साल तक के 15 लड़के हैं। झाड़ियों, सड़क और कूड़े के ढेर पर नवजात बच्चियों को फेंके जाने के मामले देखकर दुखी हुए और 2015 में गोविदपुरम में घरौंदा बालगृह खोला। जिसमें शून्य से 10 साल तक के 27 बच्चे हैं।
गौरतलब है कि पुलिस को लावारिस हालत में जो बच्चे मिलते हैं, उनको देखभाल के लिए बालगृह में भेजा जाता है। ओंकार सिंह काउंसलिग कर बच्चों के परिवार की तलाश करते हैं, 400 से अधिक बच्चों को उनके घर तक पहुंचा चुके हैं। ज्यादातर बच्चे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल के हैं।
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