जिले में मुगल सम्राट काफी समय तक रहे। इस दौरान उन्होंने रहने, खाने, पीने के अलावा आने जाने के लिए भी मार्ग तय कर रखे थे। आगरा और दिल्ली आने जाने के लिए मुगल शासक जल मार्ग का सहारा लिया करते थे। जिस मार्ग से वह आते जाते थे, उसी मार्ग को मुगलों ने जल बंदरबाह बना दिया था जहां से मुगल अपना सामान इधर से उधर भेजा करते थे। लेकिन अब इस जल बंदरगाह को संरक्षण की दरकार है।
मुुहम्मद गौरी ने फिरोजाबाद से आगरा और दिल्ली समेत अन्य स्थानों पर जाने के लिए चन्द्रनगर स्थित यमुना किनारे के स्थान को जल बंदरगाह के रूप में स्थापित किया। जहां यमुना में बहुत से समुद्री जहाज मुगल सेना और सामान को ढोने का काम करते थे। फिरोजाबाद के बेश्कीमती सामान को भी मुगलों द्वारा बंदरगाह के जरिए बाहर भेज दिया जाता था। वहीं फिरोजशाह नेे भी फिरोजाबाद को अपना गढ बनाया था। फिरोजशाह यहां काफी लंबे समय तक रूका और इस शहर का नाम ही फिरोजाबाद रख दिया।
यमुना किनारे बने घाट के पास जल बंदरगाह के अवशेष आज भी हैं। लोगों का कहना है कि पहले यातायात मार्ग के साधन कम थे। राजा महाराजा आने जाने के लिए जलमार्ग का सहारा लिया करते थे। मुगल शासक अपने हाथी घोडों और पूरी सेना को जलमार्ग द्वारा ही लाने ले जाने का काम करते थे।
शहर की जनता ने जल बंदरगाह को संरक्षित किए जाने की मांग की है जिससे आने वाली पीढी को भी ज्ञात रहे कि फिरोजाबाद में भी कभी जल बंदरगाह हुआ करता था। यमुना किनारे पडे बड़े-बड़े पत्थर आज भी वहां बंदरगाह होने की गवाही दे रहे हैं।
शहरवासी राहुल गुप्ता कहते हैं कि राजा चन्द्रसेन पर रात के समय में मोहम्मद गौरी ने यहां आक्रमण किया था और उन्हें परास्त कर सबकुछ लूट कर ले गया था। पूर्व वन मंत्री रघुवर दयाल वर्मा जब तक रहे उन्होंने यहां विकास कराया। बंदरगाह को संरक्षित करने के प्रयास किए लेकिन उनकी मौत के बाद पुराना जल बंदरगाह वीरान के रूप में पडा हुआ है। जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।