गोपनीय हुई थी रणनीति
शहर के बीचों बीच स्थित बौहरान गली की बात करें तो दिलोदिमाग पर एक ही बात आती है चूड़ियाँ। भले ही आज चूड़ियों के बाजार के रूप में इसने प्रसिद्धि पा ली हो लेकिन आजादी के समय में यहां आजादी के दीवाने गोपनीय रूप से रणनीतियाँ तय करते थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस ने भी बैठक को संबोधित किया था जिसका आज भी तिलक भवन गवाह है।
शहर के बीचों बीच स्थित बौहरान गली की बात करें तो दिलोदिमाग पर एक ही बात आती है चूड़ियाँ। भले ही आज चूड़ियों के बाजार के रूप में इसने प्रसिद्धि पा ली हो लेकिन आजादी के समय में यहां आजादी के दीवाने गोपनीय रूप से रणनीतियाँ तय करते थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस ने भी बैठक को संबोधित किया था जिसका आज भी तिलक भवन गवाह है।
शहर भर में हुए थे आंदोलन
भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर गोरों के अत्याचारों से आजादी पाने के लिए शहरभर में आंदोलन चले थे लेकिन बौहरान गली का तिलक भवन गोपनीय बैठकों के लिए प्रयोग किया जाता था। तिलक भवन में आज की तरह कुर्सियाँ नहीं थीं। वहां जमीन पर टाट पट्टियाँ हुआ करती थीं। इशारों में अक्सर आजादी के दीवाने बातचीत किया करते थे। जब भी कोई मीटिंग होती थी तो शहरभर के चुनिंदा लोगों को अति गोपनीय तरीके से बुलाया जाता था। हां, कोई सभा करनी होती थी तो फिर इसकी सूचना सार्वजनिक रूप से दी जाती थी।
भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर गोरों के अत्याचारों से आजादी पाने के लिए शहरभर में आंदोलन चले थे लेकिन बौहरान गली का तिलक भवन गोपनीय बैठकों के लिए प्रयोग किया जाता था। तिलक भवन में आज की तरह कुर्सियाँ नहीं थीं। वहां जमीन पर टाट पट्टियाँ हुआ करती थीं। इशारों में अक्सर आजादी के दीवाने बातचीत किया करते थे। जब भी कोई मीटिंग होती थी तो शहरभर के चुनिंदा लोगों को अति गोपनीय तरीके से बुलाया जाता था। हां, कोई सभा करनी होती थी तो फिर इसकी सूचना सार्वजनिक रूप से दी जाती थी।
1926 में आए थे महात्मा गांधी
आज भी लोगों को याद है जब सन 1926 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तिलक भवन में आए थे। यहां भीड़ उनको देखने और सुनने के लिए एकत्रित हुई थी। एक एक बात को लोगों ने ध्यान से सुना था। आजादी के बिगुल फूंकने में उन्होंने अहिंसा का जो पाठ पढ़ाया उसे लोगों ने दिल से अपनाया भी था। बापू के बाद तिलक भवन में सन 1940 को गरम दल के नेता कहे जाने वाले सुभाष चंद्र बोस की दस्तक हुई। उन्होंने अपने जोशीले भाषणों से लोगों में जोश भरा तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा भवन गूंज उठा था। गणेश शंकर विद्यार्थी भी एक बार यहां पर एक कार्यक्रम में भाग लेने आए थे।
आज भी लोगों को याद है जब सन 1926 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तिलक भवन में आए थे। यहां भीड़ उनको देखने और सुनने के लिए एकत्रित हुई थी। एक एक बात को लोगों ने ध्यान से सुना था। आजादी के बिगुल फूंकने में उन्होंने अहिंसा का जो पाठ पढ़ाया उसे लोगों ने दिल से अपनाया भी था। बापू के बाद तिलक भवन में सन 1940 को गरम दल के नेता कहे जाने वाले सुभाष चंद्र बोस की दस्तक हुई। उन्होंने अपने जोशीले भाषणों से लोगों में जोश भरा तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा भवन गूंज उठा था। गणेश शंकर विद्यार्थी भी एक बार यहां पर एक कार्यक्रम में भाग लेने आए थे।
वर्तमान में पुस्तकालय है संचालित
वर्तमान में तिलक भवन में भारती भवन पुस्तकालय संचालित है। भारत विकास परिषद द्वारा संचालित इस पुस्तकालय में हजारों पुस्तकें विभिन्न विषयों पर आधारित हैं। लोगों को जब भी आजादी की दास्तान हो या फिर किसी विषय की जानकारी लेनी होती है तो इस पुस्तकालय जा पहुंचते हैं।
वर्तमान में तिलक भवन में भारती भवन पुस्तकालय संचालित है। भारत विकास परिषद द्वारा संचालित इस पुस्तकालय में हजारों पुस्तकें विभिन्न विषयों पर आधारित हैं। लोगों को जब भी आजादी की दास्तान हो या फिर किसी विषय की जानकारी लेनी होती है तो इस पुस्तकालय जा पहुंचते हैं।