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Budget 2019 : जानिए आखिर क्यों बजट में राजकोषीय घाटे की चर्चा की जाती है?

Budget 2019 : मोदी सरकार 5 जुलाई को अपने दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करेगी। इस बार बजट में राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सरकार कई जरूरी कदम उठा सकती है।
 

Jul 01, 2019 / 11:26 am

Shivani Sharma

Budget 2019 : जानिए आखिर क्यों बजट में राजकोषीय घाटे की चर्चा की जाती है?

नई दिल्ली। अगर कोई आम आदमी अपनी कमाई से ज्यादा रुपए खर्च करता है तो वह उसी के लिए नुकसानदायक साबित होता है क्योंकि अगर आप अपनी कमाई से ज्यादा रुपए खर्च ( income and expenditure ) करेंगे तो आपको कर्ज लेकर अपने खर्चों को पूरा करना पड़ता है। ठीक उसी तरह से देश का भी हिसाब है अगर देश में आय से ज्यादा खर्चे होंगे तो देश भी बर्बादी की कगार पर पहुंच जाता है और आय से अधिक खर्च करने को ही राजकोषीय घाटा ( fiscal deficit ) कहते हैं। वहीं, अगर कोई देश अपनी आय के मुताबिक खर्च करता है तो उसे राजकोषीय अनुशासन कहा जाता है। इसलिए हमें देश में आय और व्यय के बीच बैलेंस बनाकर रखना काफी जरूरी होता है। आइए आज हम आपको बताते हैं कि बजट में राजकोषीय घाटा क्यों जरूरी होता है-


बजट में निर्धारित होता है लक्ष्य

बजट ( budget 2019 ) में सरकार हर साल अपने आय और व्यय का खर्चा देती है। इसमें राजकोषीय घाटे का भी लक्ष्य रखा जाता है, जिससे कि देश में बढ़ती महंगाई को रोका जा सके और देश की आर्थिक स्थिति भी अच्छी रही। मोदी सरकार ने आम बजट 2018-19 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.3 फीसदी रखा है। अगर सरकार अपने लक्ष्य से ज्यादा घाटा होता है तो इस स्थिति में देश में महंगाई बढ़ने का खतरा हो जाता है। इसके साथ ही लोन भी महंगा हो जाता है।


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साल 2018 में 3.2 फीसदी था लक्ष्य

साल 2018 के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ( Arun Jaitely ) ने जीडीपी का 3.2 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य निर्धारित किया था। इसका मतलब है कि सरकार का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3 फीसदी तक रहेगा। अगर देश का रघाटा बढ़ जाता है तो उसको कम कर पाना सरकार के लिए काफी मुश्किल होता है। इसलिए सरकार बजट में पहले से ही इसका लक्ष्य निर्धारित कर देती है, जिससे कि पूरे साल किसी भी तरह का परेशानी ने हो।

दो महीने में 52 फीसदी पहुंचा घाटा

हमारे देश में सरकार एक ओर जहां राजकोषीय घाटे ( fiscal deficit ) को कंट्रोल करने की कोशिश में लगी हुई थी वहीं, केंद्र सरकार ( Central govt ) ने पूरे वित्त वर्ष 2019-20 के लिए जो राजकोषीय घाटा तय किया था, उसका 52 फीसदी उसने दो महीने में पूरा कर लिया है। इस आंकड़े को देखने के बाद पीएम मोदी ने राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है।


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क्या होता है राजकोषीय घाटा

आपको बता दें कि एक्सपेंडिचर और रेवेन्यू के अंतर को राजकोषीय घाटा कहते हैं। अगर एक्सपेंडिचर की राशि रेवेन्यू की राशि से अधिक तो राजकोषीय घाटा बढ़ जाता है। एक साल पहले यह आंकड़ा 55.3 फीसदी था। चालू वित्त वर्ष 2019-20 के शुरुआती दो महीनों अप्रैल और मई में खर्च और राजस्व के बीच 3,66,157 करोड़ रुपये का अंतर है।


अंतरिम बजट में सरकार ने घोषणा की

मोदी सरकार ने अपने अंतरिम बजट ( Interim budget ) में एलान करते हुए कहा था कि चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए 7.03 लाख करोड़ रुपए के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य निर्धारित किया है। यह चालू वित्त वर्ष में जीडीपी का 3.4 फीसदी है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.4 फीसदी के स्तर पर रखने का लक्ष्य रखा था जो पिछले साल के लक्ष्य के ही बराबर है। इस साल सरकार का पूंजीगत खर्च भी पहले की तुलना में कम हो गया है।

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