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क्यों IRDAI ने कैशलेस ( Cashless Treatment ) को किया जरूरी, जानें इसके बारे में सबकुछ

IRDAI ने इन्ही बातों पर सख्त होते हुए Cashless Treatment को बीमित व्यक्ति का हक करार देते हुए ऐसा करने से मना करने पर हॉस्पिटल के किलाफ कार्यवाही की बात कही है।
हॉस्पिटल्स मरीज के पास पॉलिसी होने के बावजूद कैशलेस ट्रीटमेंट ( Cashless Treatment ) करने से मना कर रहे हैं

Jul 16, 2020 / 05:52 pm

Pragati Bajpai

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नई दिल्ली: सभी जानते हैं जबसे कोरोना का प्रकोप फैला है हर कोई हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ले रहा है। हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ( Health Insurance Policy ) में 2 ऑप्शन होते हैं कैशलेस पेमेंट औऱ Reimbursement. अब देखा जा रहा है कि कई हॉस्पिटल्स मरीज के पास पॉलिसी होने के बावजूद कैशलेस ट्रीटमेंट ( Cashless Treatment ) करने से मना कर रहे हैं। जिससे कि मरीजों को काफी परेशान होना पड़ रहा है ।

अब IRDAI ने इन्ही बातों पर सख्त होते हुए Cashless Treatment को बीमित व्यक्ति का हक करार देते हुए ऐसा करने से मना करने पर हॉस्पिटल के किलाफ कार्यवाही की बात कही है। ऐसे में जानना जरूरी होत जाता है कि आखिर Cashless और Reimbursement में कौन सा ऑप्शन हैं बेहतर है और दोनों में अंतर क्या है ?

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कैशलेस हेल्थ पॉलिसी ( health insurance cashless claims ) की बात करें तो इस तरह की पॉलिसीज में हास्पिटल में होने वाले हर तरह के खर्च को इंश्योरेंस कंपनियां ( insurance companies ) उठाती हैं। यानि आपके हॉस्पिटल में भर्ती होने से लेकर डिस्चार्ज होने तक दवाई, टेस्ट, हॉस्पिटल और बाकी सारे खर्चे इंश्योरेंस कंपनी उठाएगी। हां यहां एक बात ध्यान रखने वाली है कि अपने भर्ती होने की खबर आपको कंपनी को 48 घंटे पहले देनी होती है। यानि कि इसमें प्लान्ड हॉस्पिटलाइजेशन कवर किया जाता है। लेकिन इमरजेंसी सिचुएशन में 24 घंटे की अवधि भी मान्य होती है। इस तरह की पॉलिसी लेते वक्त आप ध्यान दें कि आपकी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ( health insurance policy ) में ज्यादा से ज्यादा हॉस्पिटल हों ताकि आपको इलाज करवाने में आसानी हों।

दूसरी तरह की पॉलिसीज होती है Reimbursement Policy, इन पॉलिसीज में आपको पूरा हॉस्पिटल खर्च अपने आप उठाना होता है और बाद में आप कंपनी को बिल सब्मिट करते हैं। जिसे बाद में कंपनी आपको वापस करती है। यानि REIMBURSMENT करती है उन सभी बिल्स को। यानि इस पॉलिसी में इमरजेंसी में अगर आपको किसी को एडमिट कराना हो तो सारा पैसा खुद ही मैनेज करना होता है अगर आपके पास पैसा न हो तो आपको कई बार लोन भी लेना पड़ता है। क्योंकि इंश्योरेंस कंपनी आपको बाद में पैसा देती है। कई बार बिल का क्लेम क्लियर ( health policy claim process ) करने में भी कंपनी बहुत टाइम ले लेती है। इससे भी पॉलिसी होल्डर ( health policy holder ) को काफी दिक्कत होती है।

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