पेरिस। पनामा की विधि फर्म मोस्साक फोंसेका के एक करोड़ से ज्यादा लीक हुए टैक्स डॉक्यूमेंट्स में एक नाम अनुराग केजरीवाल का भी है। यह नाम थोड़ा कनफ्यूज कर सकता है, लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर यह अनुराग केजरीवाल है कौन।
अनुराग केजरीवाल दिल्ली लोकसत्ता पार्टी के लीडर रह चुके हैं। वर्ष 2014 में इन पर एक स्टिंग ऑपरेशन सामने आने के बाद केजरीवाल को पार्टी से निकाल दिया गया था। इस स्टिंग में केजरीवाल डींगे हांकते नजर आ रहे थे कि उनमें इतनी काबलियत है कि वे पार्टी के नेताओं को निजी हित के लिए काम करने वालों के प्रति प्रभावित कर सकते हैं। इसके अलावा उन्हें स्टिंग में यह भी कहते सुना गया था कि उन्होंने चुनाव में दूसरी पार्टी के प्रतिनिधित्व की काट करने करे लिए डमी कैंडीडेट्स भी उतारे थे।
पनामा पेपर्स वेबसाइट के अनुसार केजरीवाल और उनकी पत्नी उत्तरा केजरीवाल ने अपनी पहली कंपनी वर्ष 2007 में ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में स्थापित की थी। इसके बाद वर्ष 2008 और 2010 में दोनों ने अपनी पूंजी का पुनर्गठन किया था और पनामा में दो फाउंडेशंस बनाई थीं – द नेडस्टार फाउंडेशन और द प्रूरक फाउंडेशन।
नेडस्टार फाउंडेशन के जरिए इस दंपति ने नेडस्टार कमर्शियल लिमिटेड और न्यूविंगटन ग्रुप ट्रेडिंग लिमिटेड नाम से दो कंपनियां बनाईं थीं। ये कंपनियां ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में बनाई गईं थी। पनामा पेपर्स बेससाइट के अनुसार केजरीवाल और उनकी पत्नी के पास बिसके ओवरसीज की पावर ऑफ अटॉर्नी थी और ये न्यूविंगटन ग्रुप ट्रेडिंग के डायरेक्टर्स भी थे। दूसरे फाउंडेशन के जरिए केजरीवाल और उनकी पत्नी बिसके ओवरसीज लिमिटेड के मालिक थे जिसका नाम बाद में बिसके एक्सपोर्ट्स लिमिटेड हो गया था और क्रिम्स इन्वेस्टमेंट इंक भी इन्हीं की कंपनी थी।
लीक हुए दस्तावेजों के अनुसार मोसाका फोंसेका को केजरीवाल की कंपनियों के खिलाफ वर्ष 2011, 2012, 2013 में कानूनी कार्रवाई से संबंधी दस्तावेज मिले थे। नेडस्टार फाउंडेशन और नेडस्टार कमर्शियल वर्ष 2011 में इनएक्टिवेटिड हो गई थी, जबकि बिसके वर्ष 2012 और क्रिम्स व प्रूरक का कामकाज 2013 में बंद हो गया था। पनामा पेपर्स वेबसाइट के अनुसार अक्टूबर 2012 को न्यूविंगटन भी स्ट्रक ऑफ हो गई थी।
इस खुलासे के बाद केजरीवाल का कहना है कि पनामा और ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में कंपनियां उन्होंने अपने बिजनेस पार्टनर्स के फिनांस या आयरन ओर के एक्सपोर्ट में मदद करने की रजामंदी के बाद ही शुरू की थीं। जैसे ही केजरीवाल को यह अहसास हुआ कि ऑफशेर कंपनियां समस्या पैदा कर सकती हैं, बैंक क्रडिट मिलने में मुश्किल हो सकती है और उन्हें इससे होने वाली आय का ब्योरा भारत सरकार को भी देना होगा, तो उन्होंने वर्ष 2010 में अपनी ऑफशोर कंपनी बंद कर दी।