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माता शीतला को देश कई राज्यों में अलग अलग नामों से जाना व पूजा जाता है- जैसे- शीतला माता, बसौड़ा, बसोरा आदि। शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी माना जाता है। यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती है। गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान है।
मीठे चावल का प्रसाद है मुख्य भोग
शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के समय उन्हें खास मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है। ये चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं, इन्हें सप्तमी की रात को बनाया जाता है। इसी प्रसाद को घर में सभी सदस्यों को खिलाया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन घर में ताज़ा खाना नहीं बनता।
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ऐसे करें शीतला माता की पूजा
सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर नहाएं, पूजा की थाली तैयार करें, थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें। दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, सिक्के और मेहंदी रखें। दोनों थाली के साथ में लोटे में ठंडा पानी रखें। शीतला माता की पूजा करें और दीपक को बिना जलाए ही मंदिर में रखें। माता को सभी चीज़े चढ़ाने के बाद खुद और घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं। अब हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना करें और ‘हे माता, मान लेना और शीली ठंडी रहना’ कहें।
आज के दिन घर में पूजा करने के बाद माता के मंदिर में भी पूजा करें। मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाएं, रोली और हल्दी के टीका करें। मेहंदी, मोली और वस्त्र अर्पित करें। बड़कुले की माला व आटे के दीपक को बिना जलाए अर्पित करें। अंत में वापस जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाएं. इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं और थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कें। इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ था वहां पूजा करें, थोड़ा जल चढ़ाएं और पूजन सामग्री चढ़ाएं। घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें। पूजन के बाद अगर पूजा की सामग्री बच जाएं तो उसे गाय को खिला दें।