शनि देव को कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, रौद्रान्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मंद, पिप्पलाश्रय नाम से भी जाना जाता है। मंत्र : ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।, ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।
मई 21, 2020 को 21:38:10 से अमावस्या आरम्भ
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वहीं इसे ज्येष्ठ अमावस्या भी कहते हैं, इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है, अतः इस कारण से ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन शनि देव के पूजन का विशेष विधान है।
सूर्य पुत्र शनि देव हिन्दू ज्योतिष में नवग्रहों में से एक हैं। मंदगति से चलने की वजह से इन्हीं शनैश्चर भी कहा जाता है। शनि जयंती के साथ-साथ उत्तर भारत में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिये इस दिन वट सावित्री व्रत भी रखती हैं।
ज्येष्ठ अमावस्या/शनिश्चरी अमावस्या व्रत और धार्मिक कर्म…
ज्येष्ठ अमावस्या पर दान,धर्म, पिंडदान के साथ-साथ शनि देव का पूजन और वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्मकांड इस प्रकार हैं-
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: इस दिन नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देकर बहते जल में तिल प्रवाहित करना चाहिये।
: पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें।
: शनि देव को कड़वा तेल, काले तिल, काले कपड़े और नीले पुष्प चढ़ाएं। शनि चालीसा का जाप करें।
: वट सावित्री का व्रत रखने वाली महिलाओं को इस दिन यम देवता की पूजा करनी चाहिए और यथाशक्ति दान-दक्षिणा देना चाहिए।
ऐसे करें व्रत और पूजन
शनिवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद एक साफ स्थान पर बैठें। आप चाहें तो मंदिर जाकर भी शनिदेव की पूजा कर सकते हैं। कई जगहों पर मान्यता है कि शनिदेव की मूर्ति घर में नहीं रखते हैं इसलिए मन ही मन शनिदेव का ध्यान करें। शनिदेव की पूजा के लिए सरसों तेल का दीया जलाएं और शनिदेव को नीले फूल अर्पित करें।
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इस चमत्कारी मंत्र का जप है लाभकारीरुद्राक्ष की माला से शनिदेव के मंत्रों का जप करें। बेहतर होगा कि आप 5 माला जप करें। शनि देव का बीज मंत्र- ओम प्रां प्रीं प्रौं शः शनैश्चराय नमः’ आप चाहें तो शनि पत्नी मंत्र और तांत्रिक मंत्र से भी जप कर सकते हैं।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र का 11 बार पाठ करना उत्तम रहेगा। इस अवसर पर पितरों को भी प्रसन्न करके आप जीवन में आ रही बाधाओं से मुक्ति पा सकते हैं। इसके लिए पीपल की पूजा करके पीपल के पत्तों पर 5 प्रकार की मिठाइयों को रखकर पितरों का ध्यान पूजन करें। पितरों को अर्पित किया गया प्रसाद घर नहीं लाएं, पूजन स्थल पर मौजूद लोगों में प्रसाद वितरण कर दें।
शनि अमावस्या के दिन काले उड़द काले जूते, काले वस्त्र, तेल का दान और शनि महाराज की पूजा और दीपदान करना बहुत ही शुभ फलदायी कहा गया है। इससे शनि महाराज अपनी महादशा, अन्तर्दशा और गोचर के दौरान अधिक नहीं सताते हैं और परेशानियों का सामना करने की क्षमता भी देते हैं।
– इस दिन सुरमा, काले तिल, सौंफ आदि वस्तुओं से मिले जल से स्नान करने से ग्रहदशा दूर होती है।
: ऐसे भोजन से करें परहेज :
शनिश्चरी अमावस्या के दिन तामसिक भोजन जैसे मांस-मदिरा के सेवस से परहेज करना चाहिए और सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। वैसे तो मांस-मदिरा का सेवन कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि जीव-हत्या पापा है। इससे ना सिर्फ आपको पाप लगता है बल्कि आपका मन भी अशुद्ध होता है।
: ऐसे लोगों को न करें परेशान
शनिश्चरी अमावस्या के दिन कभी भी गरीब व असहाय लोगों को परेशान नहीं करना चाहिए। शनिदेव की कृपा पाने के लिए इसे अपनी आदत में जरूर बना लें। शनिदेव गरीबों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जो गरीबों का अपमान करता है, उस पर शनिदेव की कभी कृपा नहीं रहती है।
: इन चीजों को घर ना लाएं
इस दिन भूलकर भी अपने घर पर लोहा और लोहे से बनी चीजें, नमक, काली उड़द दाल, काले रंग के जूते और तेल घर में नहीं लाना चाहिए। बताया जाता है इनको घर में लाने से दरिद्रता आती है। साथ ही इस दिन पढ़ाई-लिखाई से जुड़ी चीजें भी नहीं खरीदना चाहिए।
: पति-पत्नी ध्यान रखें यह बात
शनिश्चरी अमावस्या पर स्त्री और पुरुष दोनों को यौन संबंध बनाने से बचना चाहिए। गरुण पुराण के अनुसार, अमावस्या पर यौन संबंध बनाने से पैदा होने वाली संतान को जीवन में कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। इस समय शरीर, बुद्धि तथा मन में समांजस्य बनाए रखना चाहिए।
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: इन चीजों को ना खरीदेंशनिवार के दिन भूलकर भी कैंची नहीं खरीदनी चाहिए। इस दिन खरीदी गई कैंची रिश्तों में तनाव लाती है। अगर आपको कैंची खरीदनी है तो शनिवार के अलावा किसी और भी दिन आप खरीद सकते हैं। इस दिन काली मिर्च और काले तिल भी खरीदना अशुभ माना गया है।
अमावस्या की रात किसी भी तरह की सुनसान जगह जैसे श्मशान घाट या कब्रिस्तान जाने या उसके आस-पास घूमना से बचना चाहिए। अमावस्या की रात नकारात्मक शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं। अमावस्या की रात ऐसी जगहों पर कई तरह की बुरी शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं।
अमावस्या की सुबह देर तक भूलकर भी नहीं सोना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठें और काले तिल डालकर स्नान करें। इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करके पूजा-पाठ करना चाहिए।
शनिश्चरी अमावस्या के दिन किसी भी तरह के वाद-विवाद से बचना चाहिए। घर में अशांति का वातावरण हमेशा नकारात्मक शक्ति को जन्म देता है। घर में वाद-विवाद होने से पितरों की कृपा नहीं मिलती है। इस दिन स्नान, दान से मोक्ष फल की प्राप्ति होती है।
ज्येष्ठ अमावस्या और शनि जयंती का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि देव का जन्म हुआ था, इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। वैदिक ज्योतिष में शनि देव सेवा और कर्म के कारक हैं, अतः इस दिन उनकी कृपा पाने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। शनि देव न्याय के देवता हैं उन्हें दण्डाधिकारी और कलियुग का न्यायाधीश कहा गया है। शनि शत्रु नहीं बल्कि संसार के सभी जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं।
शनि जन्म कथा
शनि देव के जन्म से संबंधित एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है। इस कथा के अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ था और उन्हें मनु, यम और यमुना के रूप में तीन संतानों की प्राप्ति हुई। विवाह के बाद कुछ वर्षों तक संज्ञा सूर्य देव के साथ रहीं लेकिन अधिक समय तक सूर्य देव के तेज को सहन नहीं कर पाईं।
इसलिए उन्होंने अपनी छाया को सूर्य देव की सेवा में छोड़ दिया और कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। हालांकि सूर्य देव को जब यह पता चला कि छाया असल में संज्ञा नहीं है तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने शनि देव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद से ही शनि और सूर्य पिता-पुत्र होने के बावजूद एक-दूसरे के प्रति बैर भाव रखने लगे।
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वट सावित्री व्रत
यह सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है, हालांकि इस व्रत को कुमारी और विधवा महिलाएं भी कर सकती हैं। इस व्रत का पूजन ज्येष्ठ अमावस्या को किया जाता है। इस दिन महिलाएँ वट यानि बरगद के वृक्ष का पूजन होता है। यह व्रत स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगल कामना के साथ करती हैं। इस दिन सत्यवान-सावित्री की यमराज के साथ पूजा की जाती है।