त्योहार

पहली बार एक पत्नी ने पति को बांधी थी राखी, जानें पूरी पौराणिक कहानी

Rakshabandhan ki history in hindi: सावन पूर्णिमा पर मनाया जाने वाला रक्षाबंधन त्योहार पूरे देश में उत्साह से मनाया जाता है। इसमें बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं और उसके उन्नति दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि सबसे पहले एक पत्नी ने पति को राखी बांधी थी। फिर बाद में भगवान श्रीकृष्ण के समय यह भाई-बहन का त्योहार बन गया। आइये जानते हैं रक्षाबंधन की पौराणिक कथा ( first time wife tied Rakhi to husband) ..

भोपालAug 13, 2024 / 07:45 pm

Pravin Pandey

पहली बार एक पत्नी ने पति को बांधी थी राखी, जानें पूरी पौराणिक कहानी

रक्षाबंधन त्योहार का इतिहास

Rakshabandhan ki history in hindi: रक्षाबंधन त्योहार का इतिहास काफी पुराना है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसका जुड़ाव देव दानव युद्ध से है, जिसमें एक पत्नी ने सबसे पहले सावन पूर्णिमा पर पति की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधा था। बाद में इसकी परंपरा शुरू हो गई और पुरोहित यजमानों के घर जाकर रक्षा सूत्र बांधने लगे और उनके कल्याण, रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे।

बाद में द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के घाव पर जब द्रौपदी ने अपनी साड़ी के टुकड़े को फाड़कर बांधा और भगवान ने उनकी रक्षा का वचन दिया, उसके बाद यह त्योहार भाई बहन का त्योहार बन गया। साथ ही रक्षासूत्र की जगह इसका स्वरूप बदलकर आधुनिक राखी में तब्दील हो गया। आइये पढ़ते हैं रक्षाबंधन का इतिहास और वह कहानी जिसमें सबसे पहले एक पत्नी ने पति को रक्षा सूत्र यानी राखी बांधी ..
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रक्षा बंधन की कहानी

रक्षा बंधन की कहानी सतयुग की है और वह पति पत्नी देवराज इंद्र इंद्राणी थे। कथा के अनुसार एक बार इस समय देवताओं और दानवों में युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में देवता हार रहे थे, देवराज इंद्र को इस मुश्किल घड़ी से निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा था।
आखिरकार 12 वर्ष तक चले युद्ध में देवता असुरों से युद्ध हार गए और देवताओं के राजा इंद्र की पराजय के बाद स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। साथ ही इंद्र और अन्य देवता अमरावती पलायन कर गए। दैत्यराज बली ने तीनों लोकों को वश में कर लिया और देवराज इंद्र के सभा में आने पर रोक लगा दी। साथ ही देवताओं और मनुष्यों के यज्ञ कर्म करने पर रोक लगा दी। सभी लोगों को उसकी पूजा का आदेश दिया।

इस आदेश के कारण यज्ञ, उत्सव, वेद पठन पाठन सब बंद हो गए। धर्म के नाश से देवताओं का बल घटने लगा। यह देख देवराज इंद्र देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे और उनके चरणों में निवेदन किया कि हे गुरुवर! ऐसी स्थितियों में मुझे प्राण त्यागने होंगे। न ही भाग सकता हूं और न ही युद्ध भूमि में असुरों का सामना कर सकता हूं, कुछ उपाय बताइये।

इस पर गुरु बृहस्पति ने उन्हें रक्षा विधान करने की सलाह दी। श्रावण पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल येनबद्धो बलिःराजा, दानवेंद्रो महाबलः, तेन त्वामिभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चलः।। मंत्र के साथ रक्षा विधान संपन्न किया गया और इंद्राणी ने सावन पूर्णिमा के अवसर पर विप्रों से स्वस्तिवाचन कराकर रक्षा सूत्र का तंतु लिया और अभिमंत्रित तंतु इंद्र की दायीं कलाई में बांधा।

साथ ही संग्राम में इंद्र के सुरक्षित रहने और विजयी होने के लिए प्रार्थना की, और फिर से इंद्र को युद्ध भूमि में भेजा। इसके बाद हुए देवासुर संग्राम में रक्षाबंधन विधान के प्रभाव से दानव भाग खड़े हुए और देवताओं की विजय हुई। वे सकुशल लौटे और यहीं से रक्षा बंधन की प्रथा शुरू हुई। ब्राह्मण आज भी राखी (rakhi) के दिन अपने यजमानों के यहां जाकर रक्षासूत्र बांधते हैं। इस तरह सबसे पहले इंद्राणी ने अपनी पति की कलाई पर राखी यानी रक्षा सूत्र बांधा था।
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द्वापर युग से बना भाई बहन का त्योहार

भाई बहन के त्योहार रक्षाबंधन के इस रूप को आधिकारिक रूप देने का श्रेय भगवान श्रीकृष्ण को दिया जाता है। इसके बाद ही रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक बन गया था।

कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तो उनकी अंगुली चोटिल हो गई। उससे रक्त बहने लगा, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनकी अंगुली पर बांध दिया। बाद में द्रौपदी चीरहरण के समय श्रीकृष्ण ने भाई होने का कर्तव्य निभाते हुए द्रौपदी के मान-सम्मान की रक्षा की।

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