भगवान जगन्नाथ के मंदिर की मान्यता
ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान श्री विष्णु चारों धामों की यात्रा पर जाते थे तब वह भारत के उत्तराखण्ड के चमोली के बद्रीनाथ में स्नान करते, गुजरात के द्वारका में वस्त्र पहनते हैं, पुरी में भोजन करते और तमिलनाडु रामेश्वरम में विश्राम करने बाद श्री भगवान पुरी में निवास करने लगे और कहा जाता है कि तभी से जगन्नाथ मंदिर बन गया। जब इस मंदिर का निर्माण हुआ तब अषाड़ महिना ही चल रहा था। इसलिए हर साल अषाड़ (जून-जुलाई) के महीने में भगवान जगन्नाथ के मंदिर में विशाल रथयात्रा का आयोजन होने लगा जो आज तक निरतंर जारी है, जिसमें लाखों भक्त शामिल होते हैं।
पूरे देश में निकलती है रथयात्रा
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को पुरी से शुरू होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा केवल दक्षिण भारत ही नहीं बल्कि भारत के अनेक राज्यों सहित दुनिया के कई देशों में भी यह पर्व प्रमुख धार्मिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस साल 2019 में यह रथयात्रा 4 जुलाई से शुरू हो ही है, जो पूरे 10 दिन तक चलेगी। हर साल होने वाली इस यात्रा में देश दुनिया से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
इतिहास
1- 1000 साल पुराने इस मंदिर में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण जगन्नाथ जी रूप में विराजमान है। जगन्नाथ पुरी भारत के चार पवित्र धामों में से एक है।
2- पुरी की जगन्नाथ यात्रा में श्रीकृष्ण, श्री बलराम जी एवं श्री सुभद्रा देवी जी तीन अलग अलग रथों में विराजमान होते हैं।
3- भगवान जगन्नाथ जी गरुडध्वज या नन्दीघोष नामक रथ, श्री सुभद्रा जी दर्पदलन नामक रथ एवं श्री बलदाऊ जी पालध्वज नामक रथ पर विराजमान होते हैं।
4- इन तीनों रथों को श्रद्धालु भक्त अपने कंधों पर लेकर चलते है। ऐसी मान्यता है कि इन रथों को स्पर्श करने या दर्शन मात्र में मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है।
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