कब है ललही छठ
भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी का आरंभ 24 अगस्त सुबह 7.51 बजे हो रहा है और षष्ठी तिथि का समापन 25 अगस्त को सुबह 5.30 बजे हो रहा है। उदया तिथि में यह व्रत 24 अगस्त को रखा जाएगा। इस दिन बलराम, हल और ललही माता की पूजा की जाती है। यह निराहार व्रत रखा जाता है, इस दिन हले से बोई अन्न या सब्जी बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। भैस के दूध का सेवन किया जाता है। इस व्रत के दिन महिलाएं भैंस के दूध से बने दही और महुआ को पलाश के पत्ते पर खाती हैं।ललही छठ पूजा सामग्री (Lalahi Chhath Puja Samagri)
भैंस का दूध, घी, दही और गोबरमहुए का फल, फूल और पत्ते
ज्वार की धानी, ऐपण
मिट्टी के छोटे कुल्हड़
देवली छेवली. तालाब में उगा हुआ चावल
भुना हुआ चना, घी में भुना हुआ महुआ
लाल चंदन, मिट्टी का दीपक, सात प्रकार के अनाज
धान का लाजा, हल्दी, नया वस्त्र, जनेऊ और कुश
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ललही छठ व्रत विधि (Lalahi Chhath Vrat Vidhi)
- ललही छठ वाले दिन सुबह जल्दी उठकर महुए की दातून से दांत साफ कर लें।
- इसके बाद स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद पूजा घर में भैंस के गोबर से दीवार पर छठ माता का चित्र बनाएं।
- साथ ही हल, सप्त ऋषि, पशु, किसान का भी चित्र बनाएं।
- अब घर में तैयार ऐपण से इन सभी की पूजा की जाती है।
- फिर चौकी पर एक कलश रखें। इसके बाद भगवान गणेश और माता पार्वती की प्रतिमा को स्थापित करें और उनकी विधि विधान पूजा करें।
- इसके बाद एक मिट्टी के कुल्हड़ में ज्वार की धानी और महुआ भरें।
- इसके बाद एक मटकी में देवली छेवली रखें। फिर हल छठ माता की पूजा करें।
- इसके बाद कुल्हड़ और मटकी की विधि विधान पूजा करें।
- फिर सात तरह के अनाज जैसे गेहूं, मक्का, जौ, अरहर, मूंग और धान चढ़ाएं।
- इसके बाद धूल के साथ भुने हुए चने चढ़ाएं।
- फिर आभूषण और हल्दी से रंगा हुआ वस्त्र भी चढ़ाएं।
- फिर भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन किया जाता है।
- अंत में छठ की कथा पढ़ें और माता पार्वती की आरती उतारें।
- पूजा स्थान पर ही बैठकर महुए के पत्ते पर महुए का फल और भैंस के दूध से निर्मित दही का सेवन करें।