त्योहार

केवट जयंती : वो राम का ही नाम हैं जो सब की नैया पार लगा देता है

वो राम का ही नाम हैं जो सब की नैया पार लगा देता है

May 15, 2019 / 02:41 pm

Shyam

केवट जयंती : वो राम का ही नाम हैं जो सब की नैया पार लगा देता है

हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को उसी केवट राज की जयंती मनाई जाती है, जिन्होंने त्रेतायुग में भगवान रामचन्द्र जी को बनवास के दौरान गंगा जी के इस तट से उस तट पर नाव सं पार कराया था। जानिएं केवट जयंती पर रामचरित्र मानस में वर्णित केवट और राम जी के प्रेरक प्रसंग को।

 

उतरि ठाढ़ बए सुरसरि रेता। सीय रामु गुह लखन समेता।।
केवट उतरि दंडवत कीन्हा। प्रभुहि सकुच एहि नहिं कछु दीन्हा।।
इस चौपाई में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि निषादराज और लक्ष्मण जी श्री सीता जी और श्री राम जी नाव से उतर कर रेत में खड़े हो गए। तब केवट ने उतरकर प्रभु को दंडवत प्रणाम किया।

 

केवट की अकड़
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि गंगा जी के उस पार तो केवट बड़ी अकड़ दिखा रहा था।
जासु नाम सुमरित एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा।।
सोइ कृपालु केवटहि निहोरा। जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा।।

इस चौपाई में आगे कहते हैं एक बार जिनका नाम स्मरण करते ही मनुष्य भवसागर से पार उतर जाते हैं और जिन्होंने वामनावतार में संसार को तीन पग से भी छोटा कर दिया था, अर्थात् दो ही पग में त्रिलोकी को नाप लिया था, वही कृपालु श्री राम चन्द्र जी गंगा पार उतरने के लिए केवट का निहोरा कर रहे हैं।

 

लेकिन गंगा जी के इस पार आकर केवट ने प्रभु को दंडवत की है। इसका क्या कारण था ? कारण यह था कि गंगा जी के उस पार केवट ने प्रभु के चरण नहीं पकड़े केवल धोये ही थे, इसलिए वह अकड़ दिखा रहा था। लेकिन जब प्रभु के चरण पकड़ धोकर केवट गंगा जी के इस पार आया तो उसे यह अहसास हो गया कि अब अकड़ने से नहीं, बल्कि अब तो चरण पकड़ कर रखने से ही काम चलेगा।


केवट उतरि दंडवत कीन्हा।
प्रभुहि सकुच एहि नहिं कछु दीन्हा।।

प्रभु ने जब केवट को दंडवत करते देखा तो प्रभु को मन में संकोच हुआ कि इसे कुछ नहीं दिया। यह निश्चित बात है कि जब हम अपनी अकड़ (अहंकार) छोड़ कर सच में प्रभु के चरण पकड़ कर (प्रभु की शरण हो कर) प्रभु को दंडवत करते हैं (प्रभु के आगे शीश झुकाते हैं तो प्रभु को भी संकोच होता है कि मैंने इसे कुछ दिया नहीं है।

पिय हिय की सिय जाननिहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी।।
कहेउ कृपाल लेहि उतराई। केवट चरण गहे अकुलाई।।

 

पति के हृदय को जानने वाली सीता जी ने आनन्द भरे मन से अपनी रत्नजटित अंगूठी उतारी और प्रभु को दे दी।
माताओं-बहनों के लिए इस चौपाई में बड़ी उत्तम शिक्षा है कि पत्नी सीता जी की तरह ही अपने पति के मन की बात को बिना उसके (पति के) कहे ही जानने वाली होनी चाहिए।

प्रभु ने केवट से कहा- नाव की उतराई लो, तभी केवट ने व्याकुल होकर प्रभु के चरण पकड़ लिए और कहा कि हे प्रभु आज मैंने क्या नहीं पाया मेरे दोष, दुख और दरिद्रता की आग आज बुझ गयी।

 

पहले केवट के दोषों की बात करते हैं। तो हर मनुष्य के लिए सबसे बड़ा दोष पितृदोष होता है। हमें सबको अपने पितृॠण से मुक्त होना ही पड़ता है। जिस किसी व्यक्ति के पितृ तृप्त नहीं होते हैं, उसके घर में कभी भी शांति और खुशहाली नहीं रहती है। तो केवट कहता है कि मेरा एक तो पितृदोष समाप्त हो गया है। वास्तव में हमें कितनी बड़ी शिक्षा देता है रामायण का यह छोटा सा केवट प्रसंग।

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