कालाष्टमी कथा
पौराणिक कथानुसार, एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच भयंकर विवाद हो गया, इनके विवाद से आदिदेव भगवान शंकर अत्यधिक क्रोधित हो गये। शिव के क्रोध से एक अद्भुत शक्ति का जन्म हुआ जिसे कालभैरव कहा गया। इसी कालभैरव शक्ति ने दोनों देवों के विवाद का निराकरण किया था। जिस दिन कालभैरव महादेव के अंश के रूप में उत्पन्न हुये उस दिन कृष्ण पक्ष की कालाष्टमी तिथि थी। तभी से हर महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी तिथि के रूप में मनाया जाने लगा। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन पूरे श्रृद्धाभाव से पूजन और व्रत करने से अनेक कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।
कालाष्टमी के दिन ऐसे करें पूजा
नारद पुराण में कहा गया है कि कालाष्टमी के दिन कालभैरव और माँ दुर्गा की पूजा करने वाले के मनुष्यों के जीवन के सभी कष्ट दूर होकर हर मनोकामना पूरी हो जाती है। अगर कालाष्टमी तिथि की रात में भैरव बाबा के साथ माता महाकाली की विधिवत पूजा एवं अर्ध रात्रि उनके मंत्रों का जप किया जाए तो माता प्रसन्न हो जाती है। पूजा करने से पूर्व रात में माता पार्वती और भगवान शिव की कथा पढ़ना या सुनना चाहिए। इस दिन व्रती को फलाहार ही करना चाहिए एवं कालभैरव की सवारी कुत्ते को कुछ न कुछ जरूर खिलाना चाहिए।
इन मंत्रों का जप करना चाहिए-
1- काल भैरव मंत्र
।। ऊँ अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्।
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि।।
2- माता महाकाली मंत्र
।। ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा:।।
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