कार्तिक माह में सुबह स्नान आदि से निवृत होकर तांबे के बर्तन में जल भरकर तुलसी के पौधे को जल दिया जाता है। संध्या समय में तुलसी के चरणों में दीपक जलाया जाता है। कार्तिक के पूरे माह यह क्रम चलता है। इस माह की पूर्णिमा तिथि को दीपदान की पूर्णाहुति होती है।
कार्तिक मास में तुलसी पूजा का पौराणिक महत्व
ग्रंथों में कार्तिक माह की अमावस्या को तुलसी की जन्म तिथि माना गया है। इसलिए इस माह में तुलसी पूजन का बडा ही महत्व होता है। तुलसी के जन्म के विषय में अनेक पौराणिक कथाएं मिलती हैं। इसमें जालंधर राक्षस तथा उसकी पत्नी वृंदा की कथा प्रमुख मानी गई है। पद्मपुराण में जालंधर तथा वृंदा की कथा दी गई है। बाद में वृंदा तुलसी रूप में जन्म लेती हैं। भगवान विष्णु की प्रिय सेविका बनती हैं। अपने सतीत्व तथा पतिव्रत धर्म के कारण ही वृंदा विष्णुप्रिया बनती हैं। भगवान विष्णु भी उसकी वंदना करते हैं।
ऎसा माना जाता है कि वृंदा के नाम पर ही श्रीकृष्ण भगवान की लीलाभूमि का नाम वृंदावन पड़ा है। कई मतानुसार आदिकाल में वृंदावन में तुलसी अर्थात वृंदा के वन थे। तुलसी के सभी नामों में वृंदा तथा विष्णुप्रिया नाम अधिक विशेष माने जाते है। शालिग्राम रूप में भगवान विष्णु तुलसीजी के चरणों में रहते है।